रविवार, 12 नवंबर 2023

यादों की गाड़ी

यादों की गाड़ी-1
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जब कोई बस, कोई रेल या कोई जहाज

नहीं ले जा पाता तुम तक,

तब होता हूॅं सवार मैं

यादों की गाड़ी पर।

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यादों की गाड़ी-2
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ध्वनि और प्रकाश के वेग से तेज

काल और समय को अतिक्रमित कर

बहती चलती यादों की गाड़ी।

ज्यों-ज्यों चलती त्यों-त्यों फैलती,

फैलती ही चली जाती अंतरिक्ष की तरह,

और मैं

यादों के रंग-रूप-ध्वनि-भाव की अर्गलाओं को खोल

उतरता जाता गहरे भंवर में,

चित्र रुलाते, चित्र हंसाते, चित्र करते मोहित।

तुम तक पहुंचने की प्यास

और यादों की गाड़ी का सफर

बना देता है पागल, कर देता दीवाना।

केटी
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सोमवार, 20 मार्च 2023

दुआ

दुआ
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हमेशा खुश रहो,

ये दुआ है तुम्हारे लिए

पर सच ये है कि

ये दुआ है मेरे लिए

क्योंकि तुम्हारे खुश रहने से 

मिलती है मुझे खुशी,

तब यक़ीन होता है कि दुआएं हमेशा लौटती हैं,

 लौट कर खुद तक आती हैं।

केटी
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रविवार, 8 जनवरी 2023

जड़ों के लिए

हर रोज़ उसके करीब से गुजरता

देखता उसे, होता उदास

अब वो ज्यादा दिन नहीं रहेगा।

हैरान था हर रोज बढ़ती जाती उसकी अकड़

जाने किस बात का घमंड है इसे

सोचता रहता, परेशान होता मैं।

और फिर आखिरी पल भी आ गया

उसकी अकड़ कुछ और बढ़ गई

खिन्न मन से, किंचित उपेक्षा से बोल उठा मैं-

ऐ अदने-से पेड़ के झरते हुए पत्ते!

किस बात पर अकड़ रहा है,

जबकि तू मर रहा है!

जर्जर पीला पत्ता कुछ और ऐंठता बोला-

जा रे मिट्टी के ढेर!

छोटी-सी ज़िन्दगी में

मैंने दी हरियाली, नमी और बख्शी प्राणवायु,

अब झर जाऊंगा, मर जाऊंगा

फिर मिट्टी में मिल खाद बन

करूंगा अपनी जड़ों को कुछ और मजबूत, कुछ और गहरा।

फिर जन्मेंगे मुझ जैसे अनेकों पत्ते

पेड़ लहलहाएगा।

और तू!

मरेगा, खाक बन बिखरेगा

करेगा हवा को कुछ और जहरीला।

सोच मिट्टी के ढेर!

तू अपनी जड़ों के लिए क्या करेगा!

शर्म से सर झुका मैं चुप हो गया

देखते ही देखते शान से पत्ता झर गया।

केटी
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रविवार, 11 सितंबर 2022

सपने

देखना तुम,

तुम देखना वे सपने भी,

जो कोई इसलिए नहीं देख पाया

कि उसकी आंखें बहुत छोटी थीं, उन सपनों से।

देखना तुम वे भी सपने,

जो शायद कोई देखते देखते अधूरे छोड़ गया,

जीवन की आपाधापी और खुद की उहापोह में,

शायद निकाल ही नहीं पाया समय,

समय- सपने को पूरा देख पाने का।

देख सको तो देखो वे सारे सपने,

अनछुई रह गईं जिनसे क‌ई जोड़ी आंखें,

वरना दोस्त मेरे!

ज़िंदगी में अपने सपने तो हर आंख देखती ही है।

केटी
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रविवार, 28 अगस्त 2022

आक (आकड़ा) का फूल

माना कि मुझ में सुगंध नहीं

कोई मुझे घर की बगिया में रखता नहीं

लोग डरते हैं छूने से भी कि जहरीला हूॅं,

पर इस सबके बाद भी

उग आता हूॅं मैं रास्ते के किनारे

कचरे के ढेर के बीच।

हाॅं, इस सबके बाद भी

प्रकृति की सुंदरता में मिलाता हूॅं

मेरा भी एक रंग,

खड़ा हूॅं पूरी तरह सजधज के।

केटी
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शनिवार, 18 दिसंबर 2021

प्रेम

इस भरे-पूरे जगत में

अकेलेपन की पीड़ा वो जानता है

जो बेबस है इस क़दर

कि काश पूछ पाता एक बार किसी से

कि "तू ठीक तो है!"

हार जाता जब दुनिया का विज्ञान

तब कुदरत देती अनमोल उपहार

और अकेलेपन में डूबा

यकायक महसूस करने लगता वो

उसके कदमों की आवाज़।

ये बात अलग है 

कि  बढ़ जाता इससे और भी

उसका अकेलापन, उसकी अपनी पीड़ा।

प्रेम गली अति साॅंकरी, या में दो न समाय...

केटी
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मंगलवार, 30 नवंबर 2021

फ़र्क

सुबह की सैर

स्टेडियम ग्राउंड,

आनंद लेता हुआ मैं

चलता जाता।

मेरे साथ साथ समान गति से

चलता एक बच्चा,

नन्हे कदम, मगर गज़ब की तेज़ी।

बीच-बीच में दाएं-बाएं झुकता मैं,

झुकता इसी तरह बच्चा भी,

मैं झुकता व्यायाम के लिए

वो... पाॅलिथिन की थैलियां और प्लास्टिक की खाली बोतलें बीनने;

हम दोनों में बस इतना-सा फर्क था।

केटी
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