मन की धारा ...... जैसी भी बह निकली ...... कुछ कविताएं, कुछ कहानियाँ, कुछ नाटक ........ जो कुछ भी बन गया ........ मुझे भीतर तक शीतल कर गया ......
उजाला तैयार था
मुझ तक आने को
रुका रहा तब तक
जब तक मैंने बाँहें ना फैलाईं
अँधेरे के स्वागत में।
केटी ****