एक टुकड़ा दुपहरी झुलसा गई
तेज़ गर्म अंधड़ों ने कंपाया
तीखी चुभन ने किया बेबस
मेरे हिये के बिरवे को।
सज गए सन्नाटों के मेले
सधने लगी एकांतों की रागिनियाँ
थिरकने लगे पैर, बिखरने लगे मोती।
आह! ये ताप, कितना मादक....!
कितना सरस, कितना अद्भुत....!
एक अबूझ स्वीकृति में फैला दी बाहें
मेरे हिये के बिरवे ने।
पूर्ण स्वीकृति के चरम बिंदु में
घटित हुआ चमत्कार
जलाता है जो, वही नया गढ़ने लगा
ताप भीतर पैंठने लगा
सृजन के अलिखित हस्ताक्षर उभर आए
मेरे हिये के बिरवे पे।
अंतर का समूचा नेह-रस उमड़ आया बाहर
अलौकिक सुगंध बाहर को फूटी
सुप्त स्वर जाग उठे, करने लगे मंगल-ध्वनि
प्रेम कली खिल उठी
मेरे हिये के बिरवे पे।
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