बुधवार, 9 जनवरी 2019

नदी

नदी-1
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मौन रहो

ध्यान से सुनो

नदी की गुनगुन।

नदी-2
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वो नदी थी

मैं तिनका

मैं ढूँढता रहा उसे

वो बहाती रही मुझे

और एक दिन

... सफर खत्म

... खोज अधूरी।


नदी-3
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एकदम मौन होता था

तब वो सुनाई देती थी

कभी अलस दुपहरी में

किसी नीली चिड़िया-सी चहचहाती

आकर चौंका देती थी

दिन महीने और वर्षों को पार कर

खोए हुए स्मृति-पलों में तैरने लगता था मैं

वो कौन थी जो नदी बन मुझमें बहती थी।

केटी
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