नदी-1
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मौन रहो
ध्यान से सुनो
नदी की गुनगुन।
नदी-2
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वो नदी थी
मैं तिनका
मैं ढूँढता रहा उसे
वो बहाती रही मुझे
और एक दिन
... सफर खत्म
... खोज अधूरी।
नदी-3
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एकदम मौन होता था
तब वो सुनाई देती थी
कभी अलस दुपहरी में
किसी नीली चिड़िया-सी चहचहाती
आकर चौंका देती थी
दिन महीने और वर्षों को पार कर
खोए हुए स्मृति-पलों में तैरने लगता था मैं
वो कौन थी जो नदी बन मुझमें बहती थी।
केटी
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