गुलमोहर तले
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सुनो तो!
लौटोगी जब बाजार से
लाओगी क्या मेरे लिए
कुछ अनछुए छंद, कुछ बेमानी तुक
और एक गगरी भाव-रस?
बैठा रहूँगा तब तक मैं
इसी गुलमोहर के पेड़ के नीचे
करता रहूँगा प्रतीक्षा
देखता रहूँगा दूर मैदान में
अपनी छाया को हर पल लम्बा होता।
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