(पुस्तक-चर्चा : भाग-1)
तपते धोरों में एक टुकड़ा छाँव की तलाश- प्रेम, अवनि और वातायन
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सुनीता गोदारा के प्रथम प्रकाशित काव्य-संग्रह को पढ़ते हुए उनकी कविताओं का आनंद लेने के साथ-साथ मन में एक जिज्ञासा उठी कि रेगिस्तानी धोरों में बकरियाँ चराती, ठेठ ग्रामीण अंचल में पली-बढ़ी इस रचनाकार की रचना-प्रक्रिया क्या रही होगी, कौनसे तत्व होंगे जो इसके भावों को शब्दों में बदलकर कविता का इन्द्रधनुष रचते होंगे!
सुनीता इस पुस्तक में अपनी कविताओं को तीन खंडों में विभाजित करती हैं। पहला खंड है- प्रेम में आकंठ।
सुनीता इस पुस्तक में अपनी कविताओं को तीन खंडों में विभाजित करती हैं। पहला खंड है- प्रेम में आकंठ।
आईए आज इसी खंड की कविताओं पर बात करते हैं।
इस खंड में 27 कविताएँ हैं। नवंबर 2012 से इनके कविता लिखने का आरंभ कदाचित इन्हीं कविताओं से हुआ होगा। इस खंड की सभी कविताएँ प्रेम की सघनता का अहसास है। वह प्रेम जो प्रतीक्षा के क्षणों में कभी यह कहलवाता है कि-
पर वह बावरी अपने चाँद के
इंतजार में खड़ी है
अपने घर की बालकनी में।
इंतजार में खड़ी है
अपने घर की बालकनी में।
कभी वही प्रेम यादों के रूप में चारों ओर बिखर जाता है जिसे समेटते हुए कविता उभरती है कि-
सिर्फ तुम्हारी यादों को ही
अपने इर्द-गिर्द बिखेर रखा है
कविताओं में ढाल रही हूँ तुम्हें।
अपने इर्द-गिर्द बिखेर रखा है
कविताओं में ढाल रही हूँ तुम्हें।
कभी इसी प्रेम के सतरंगी सपनों की थाह पाने मन उमड़ पड़ता है और तब सुनीता की कविता कहने लगती है कि-
लहरों की तरह
कभी शान्त
कभी तूफान से
अपने ख्वाबों में
प्रिय प्रेम का रंग भर दूँ।
कभी शान्त
कभी तूफान से
अपने ख्वाबों में
प्रिय प्रेम का रंग भर दूँ।
प्रतीक्षा, मिलन, विरह, अपेक्षा और समर्पण जैसे विविध भावों में विस्तार पाता यह कविता खंड प्रेम की भीनी-भीनी सुगंध से सुवासित एक पुष्प-गुच्छ की भाँति है।
सुनीता की कुछ कविताओं में वैयक्तिकता का प्रभाव अधिक है जो कि कविता के प्रभाव को कमजोर करता है। यह मानते हुए कि कविता नितान्त व्यक्तिगत क्षण में व्यक्तिगत अनुभूति है, इस बात को भी समझना होगा कि अपने पाठक तक जाकर उसे 'व्यष्टि से समष्टि' में रूपांतरित होना ही चाहिए। रचनाकार का अनुभव पाठक के अनुभव से तादात्म्य बैठा ले तो वह रचना पाठक को अपनी-सी लगने लगती है और वही उसकी सार्थकता भी है।
एक नवोदित कवयित्री के रूप में सुनीता अपनी कविताओं से हमें आश्वस्त करती हैं कि वे विपुल संभावनाएँ रखती हैं। रेगिस्तान में बेरे (कूए) बहुत ऊंडे (गहरे) होते हैं और राजस्थानी में कहावत है- 'बेरा बरोबर मिनख ऊंडा'।
सुनीता अपनी कविताओं में वो गहराई रखती हैं और प्रेम में आकंठ डूब कविता लिखती हैं।
सुनीता की कुछ कविताओं में वैयक्तिकता का प्रभाव अधिक है जो कि कविता के प्रभाव को कमजोर करता है। यह मानते हुए कि कविता नितान्त व्यक्तिगत क्षण में व्यक्तिगत अनुभूति है, इस बात को भी समझना होगा कि अपने पाठक तक जाकर उसे 'व्यष्टि से समष्टि' में रूपांतरित होना ही चाहिए। रचनाकार का अनुभव पाठक के अनुभव से तादात्म्य बैठा ले तो वह रचना पाठक को अपनी-सी लगने लगती है और वही उसकी सार्थकता भी है।
एक नवोदित कवयित्री के रूप में सुनीता अपनी कविताओं से हमें आश्वस्त करती हैं कि वे विपुल संभावनाएँ रखती हैं। रेगिस्तान में बेरे (कूए) बहुत ऊंडे (गहरे) होते हैं और राजस्थानी में कहावत है- 'बेरा बरोबर मिनख ऊंडा'।
सुनीता अपनी कविताओं में वो गहराई रखती हैं और प्रेम में आकंठ डूब कविता लिखती हैं।
तलाशते रहते हैं
कुछ सवालों के जवाब
बरसों-बरस बेवजह
बजाए इसके
क्यों नहीं रच देते
बिन सवालों की
एक प्यार भरी दुनिया।
कुछ सवालों के जवाब
बरसों-बरस बेवजह
बजाए इसके
क्यों नहीं रच देते
बिन सवालों की
एक प्यार भरी दुनिया।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
अगले भाग में चर्चा करेंगे इसी पुस्तक के दूसरे खंड की जिसका नाम है- अवनि अम्बर बीच।
केटी
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सभी मित्रों से आग्रह है कि इस पुस्तक की कविताओं को पढ़कर एक सार्थक विमर्श करें। आप सबके विचारों और प्रतिक्रियाओं का स्वागत और प्रतीक्षा है।
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सभी मित्रों से आग्रह है कि इस पुस्तक की कविताओं को पढ़कर एक सार्थक विमर्श करें। आप सबके विचारों और प्रतिक्रियाओं का स्वागत और प्रतीक्षा है।
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