मन की धारा ...... जैसी भी बह निकली ...... कुछ कविताएं, कुछ कहानियाँ, कुछ नाटक ........ जो कुछ भी बन गया ........ मुझे भीतर तक शीतल कर गया ......
हम पढ़ाते हैं उन्हें
क से कबूतर
और वे बन जाते
क से किसान
म से मजदूर
ब से बेरोजगार
या कोई कोई ड से डाॅन भी।
काश हम उन्हें पढ़ाते कुछ और
सिखाते ज से जीवन जीना।
...
पर क्या ये हमें भी आता है...!
केटी ****
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