मन की धारा ...... जैसी भी बह निकली ...... कुछ कविताएं, कुछ कहानियाँ, कुछ नाटक ........ जो कुछ भी बन गया ........ मुझे भीतर तक शीतल कर गया ......
बहुत सुहाना ये जीवन है
ईश्वर का उपहार समझना,
आनेवाला कल तेरा है
मेरा ये उद्गार समझना,
जीता जिसने क्या पाया
और हारा जिसने क्या खोया,
राह शेष है, मुझे है चलना
सृष्टि का ये सार समझना।
केटी ****
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