1. जिन्दगी पर काबू पाना सीखना पड़ता है, वरना जिन्दगी नाक में नकेल डालकर नचाती रहती है और हमारे पास अफसोस के सिवा कुछ नहीं बचता।
2. वक्त सबके पास एक-सा रहता है। ये हम पर निर्भर करता है कि हम उसे कैसे कैसे, कहाँ कहाँ और किसे किसे देते हैं।... पर इस सबका अहसास हमें वक्त गुजर जाने के बाद ही होता है। और लोग इसीलिए वक्त को कोसते रह जाते हैं।
3. हर मोड़ से एक नई राह निकलती है। नई राह का स्वागत सूरज की पहली किरण की तरह करें तो जीवन में प्रकाश भर सकता है, आनंद के पंछी किल्लोल कर सकते हैं।... और सबसे खास बात ये है कि इसके लिए प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है, मन को मोड़ा और वो मोड़ हाजिर हुआ।
4. बारिश की फुहारों में बेतकल्लुफ होकर भीगना अपने भीतर खोए बचपन को तलाशने जैसा है। और यकीनन बेहद खूबसूरत अहसास है ये।
5. ये आंशिक रूप से सही है। वर्कप्लेस का मेरा लम्बा और बहुआयामी अनुभव मुझे सिखाता है कि वर्कप्लेस पर सबके साथ दोस्ती होनी चाहिए। ये आपको काम में सुविधा और आनंद देती है। दोस्ती के अभाव में वर्कप्लेस दिनोंदिन अरुचिकर, नीरस और धीरे धीरे एक कुढ़न देने वाला बन जाता है।
6. यादें... झिरमिर झिरमिर बूँदाबाँदी वाले मौसम में कार के विंड स्क्रीन पर लटकती, ड्राइवर को शरारत भरी नजरों से तकती महीन बूँदें हैं। एक बार नहीं, दस बार वाइपर चला लो; कुछ पल के लिए ओझल हो जाएँगी, कब वापस आ जाएँगी, पता ही नहीं चलेगा। चोर नजरों से सीधे मन की खिड़की में झाँकने लगेंगी, अहसास करवाएँगी कि जब जब झिरमिर रुत हो तो वे विंड स्क्रीन पर उभरेंगी ही, क्योंकि सच तो ये है वे कभी कहीं जाती ही नहीं, वहीं रहती हैं।
7. अचानक से गायब हो जाना कैसा होता है!!...
यह सच है कि जिन्दगी के सफर में लोग मिलते हैं, बिछड़ते हैं, कभी-कभी फिर मिलते हैं। मन की स्लेट पर कोई हल्की, कोई गहरी तो कोई बहुत गहरी रेखा खींच जाते हैं।... दूर जाता हुआ व्यक्ति बहुत दूरी तक दिखता रहता है... धीरे-धीरे उसका आकार छोटा और धुँधला होता जाता है... फिर भी देर तक दिखता रहता है... और अंत में दृष्टि-रेखा के अंतिम छोर पर वह एक बिन्दु के रूप में बदल जाता है पर वह बिन्दु भी बहुत दूर तक दिखता रहता है। तब कहीं जाकर वह आँखों से ओझल होता है।
... किन्तु, ठीक पास, एकदम करीब, हँसता-बोलता-खिलखिलाता, अपने छोटे-छोटे दुख-सुख बाँटता, कोई व्यक्ति एकदम गायब कैसे हो सकता है!! ठीक वैसे ही जैसे कमरे में बैठे हों, एक पल के लिए लाइट गई और जैसे ही अगले पल रौशनी हुई तो देखा एक व्यक्ति उठकर कहीं चला गया! ऐसे में हर पल, हर घड़ी यही खटका रहता है कि शायद वह फिर लौट आया।... पर जब दिनों, हफ्तों, महीनों तक दरवाजे तक गई हर नजर उदासी और निराशा की प्रतिध्वनि बन लौट आती है तब अचानक यह विचार एक विस्फोट के साथ समूची चेतना पर छा जाता है कि "अरे! वह तो गायब हो गया!"
केटी
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8. कितना कुछ गुजर जाता है पर तब भी घने कोहरे से ढका बहुत कुछ रह जाता है। यही वो कोना बन जाता है जहाँ हम बेसाख्ता उघड़ते चले जाते हैं, दबे हुए जख्म रिसने लगते हैं, दर्द की ठंडी लहर रीढ़ की हड्डी में बजबजाती रहती है, मन पर कटे कबूतर की मानिंद फड़फड़ाता रहता है... देर तक... बहुत देर तक!
कुछ ग़मों का एहतराम ख़ामोशी से करना होता है दोस्त!
केटी
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9. बचपन की खुशियाँ पूरे जीवन की अमूल्य निधि होती है जिसे हर व्यक्ति कंजूस की छुपी हुई पोटली की तरह संभाल कर रखता है, जब तब उसे टटोलता रहता है और खुश होता रहता है।
केटी
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