यूँही अपने आप
नहीं उपजता
कुछ भी यहाँ।
गेहूँ, गुलाब, बाजरा या बेर;
और यहाँ तक कि
घृणा, प्यार, करुणा, क्रोध और आध्यात्मिकता भी
नहीं उपजते
कुछ भी यहाँ
यूँही अपने आप।
मिट्टी, पत्थर और अतीत के खड्ड में
दबे होते हैं कुछ बीज
अवसर की अनुकूलता
बनती है कारण
जिनके उपजने का।
इसलिए जो दिखता है बाहर ऐ दोस्त!
वो दबा है बहुत गहरे
भीतर कहीं।
केटी
****
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें