पुस्तक
चर्चा
राजस्थानी
उपन्यास- रात पछै परभात
लेखक-
श्रीमती संतोष चौधरी
प्रकाशन-
राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़
राजस्थानी उपन्यास की
यात्रा का आरंभ 1956 में श्रीलाल नथमल जोशी के लिखे उपन्यास ‘आभै पटकी’ से माना जाता है। 1970 के पश्चात राजस्थानी उपन्यासों को राष्ट्रीय स्तर
पर पहचान दिलाने का काम पारस अरोड़ा, सत्येन जोशी, सीताराम महर्षि, रामनिवास शर्मा, प्रेमजी प्रेम और बी.एल. माली ने किया। यादवेन्द्र शर्मा ‘चंद्र’ ने अपनी लंबी कहानी ‘चांदा
सेठाणी’ लिखने के 4 वर्ष बाद इसे इसी नाम से उपन्यास के रूप
में लिख कर राजस्थानी उपन्यासों को एक बड़े आयाम पर पहुंचा दिया।
अपने वरिष्ठ लेखकों और अपनी
परम्परा-परिवेश से प्रेरणा ग्रहण कर संतोष चौधरी ने राजस्थानी उपन्यास लेखन में
कदम रखा। वैसे तो हम इक्कीसवीं सदी में वैज्ञानिक और तकनीकी विकास के युग में खड़े
हैं और पुरानी कुरीतियों व दोषपूर्ण सामाजिक ढांचे पर दिन प्रतिदिन पुनर्विचार कर
उसे बदलने की सतत प्रगतिशील कवायद कर रहे हैं, किन्तु अपेक्षित
मात्रात्मक परिवर्तन अभी भी दूर की कौड़ी लगता है।
किसी भी परिवार की धुरी है स्त्री।
बढ़ते हुए स्त्री-विमर्श और स्त्री-संघर्ष के बीच एक नन्हा प्रयास संतोष चौधरी का
उपन्यास है- रात पछै परभात। गाँव की रहने वाली एक मध्यम वर्ग के परिवार की बेटी
कृष्णा, जो कि पढ़ाई में होशियार है, आगे पढ़ने के लिए घर
वालों की सहायता से शहर आती है। मन में उत्साह है, उमंगें
हैं और है एक दिन खुद अपने पैरों पर खड़े होने की चाह, जिससे
आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ अपने परिवार की आर्थिक सहायता भी कर सके। कुछ दिन
ठीकठाक चलने के बाद कृष्णा के जीवन में अचानक एक झंझावात ने प्रवेश किया जो कि एक
बिगड़े रईस नौजवान के रूप में आया था। उच्च सरकारी पद पर आसीन वह नवयुवक कृष्णा के
मासूम रूप पर मोहित हो गया और किसी भी तरह उसे अपना बना लेने की ज़िद में पागल हो
उसके पीछे पड़ गया। जोड़तोड़ कर उसने कृष्णा से शादी भी करली। शादी के बाद पति सुरेश
और उसके परिवार वालों का असली रूप खुलकर सामने आने लगा। ससुराल में लगातार ननद, सास और पति के तानों और मारपीट को सहन करके भी कृष्णा अपमान के घूँट पीकर
इस उम्मीद में दिन गुजारती रही कि शायद किसी दिन हालात बदल जाएंगे। पर हालात बदले
नहीं, बद से बदतर होते चले गए। अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को
लेकर उसे दर दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर होना पड़ा। अच्छे और सुलझे हुए विचारों
वाले अजय सिंह जो कि कृष्णा के पति सुरेश के मित्र थे, के
सहयोग और प्रोत्साहन से कृष्णा सार्वजनिक परीक्षा उत्तीर्ण कर न केवल सरकारी नौकरी
पा सकने में कामयाब हुई बल्कि कॉलेज के दिनों में लिखी डायरियों में बंद अपने
साहित्यिक रचनाकर्म जिसे कि वह जीवन की आपाधापी में कहीं पीछे छोड़ आई थी, फिर से खोल कर देख सकी और साहित्य-सृजन में भी आगे बढ़ सकी।
आज भी हमारे समाज में न जाने
कितनी लड़कियाँ हैं जो कृष्णा के जीवन की तरह पुरुष प्रधान समाज में पुरुष के
दुर्व्यवहार की शिकार हैं। उनकी डायरियों में भी उनकी बेबसी और मूक रुदन की
दास्तान दर्ज हैं, पर वे डायरियाँ अपनी छाती में ही
दफ्न किए वे लड़कियाँ, वे औरतें इस दुनिया से एक दिन चल देती
हैं और किसी जगह उस कोलाहल की खबर दर्ज नहीं होती। संतोष चौधरी अपने उपन्यास के
माध्यम से उन दबी हुई पीड़ाओं को स्वर देती हैं।
संतोष चौधरी का यह पहला राजस्थानी
उपन्यास है। घटनाओं के ताने-बाने को बुनने में उन्होंने ‘क्रिएटिव डिटेल्स’ का बहुत सुंदर उपयोग किया है। स्वयं
ग्रामीण राजस्थानी परिवेश से होने के कारण वे अपनी कहानी में परम्पराओं, पारिवारिक माहौल में रिश्ते-नातों के बीच कृत्रिमता और सच्चाई के दोमुंहेपन
और समाज की सोच को बहुत करीने से उकेरती हैं। अपने जीवन के पंद्रह साल राजस्थान के
ग्रामीण क्षेत्र में सेवारत होने तथा वहाँ के समाज को बहुत निकट से देखने के बाद मैं
संतोष चौधरी के उपन्यास से बहुत हद तक सहमत हूँ, किन्तु कुछ प्रश्न
खड़े हैं जिनके उत्तर मुझे नहीं मिल पाए या कि कुछ ऐसा जो मैं एक पाठक के तौर पर ढूंढ
रहा था और मुझे नहीं मिला।
- कुछ वर्ष पहले प्रेम भारद्वाज (तत्कालीन
संपादक- पाखी) जोधपुर आए थे तब उनसे आज के उपन्यास पर काफी बातचीत हुई जिसमें उन्होंने
कहा था कि उपन्यास केवल एक लंबी कहानी नहीं है, बल्कि कहानी के माध्यम
से एक विचार का चित्रण है। संतोष चौधरी का उपन्यास ‘रात पछै परभात’ एक ऐसी कहानी है जो अपने पात्रों और घटनाक्रम के चित्रण से खुद को पढ़ा ले
जाती है। पठनीयता निस्संदेह बहुत सुंदर है पर विचार को खोजते समय मुझे यह खयाल आया
कि उपन्यास की नायिका के कृष्णा के जीवन में अगर एक दोस्त के रूप में अजय सिंह न आते
तो क्या वो अपने बलबूते कुछ कर पाती!!
- अजय
सिंह के प्रति आत्मिक प्रेम को महसूस करने और स्वयं उसे स्वीकारने के बाद भी उन्हें
अपने जीवन साथी के रूप में न चुनने के पीछे कृष्णा की क्या सोच रही होगी!!
- यह उपन्यास 2019 में प्रकाशित हुआ है। जाहिर है कुछ वर्षों से इसकी कहानी लेखक के मन को उद्वेलित कर रही होगी। ऐसे में वे कौनसी बातें हैं जो लेखक अपने उपन्यास के माध्यम से आज के और भावी युवाओं, खास तौर पर लड़कियों को बताना चाहती हैं!!
राजस्थानी भाषा में इतने सुंदर उपन्यास लेखन के लिए संतोष चौधरी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। अभी हाल ही में उनका राजस्थानी कहानी संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है। एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में उभरने के लिए राजस्थानी साहित्यिक जगत संतोष चौधरी के लेखन के प्रति आश्वस्त है। पुनश्च बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।
कमलेश तिवारी
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