जब दूर पहाड़ों पे कोहरा-सा छा जाता है
पेड़ों की फुनगियों में कोई मीठे सुर में गाता है
पवन जब बसंत की मीठी बयार लाता है
तब मुझे चुपके से तू याद आ जाता है
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भ्रमर का गुंजन समर्पित पुष्प के आह्वान पर
स्वाति की बूंदे समर्पित सीप के आह्वान पर
जब बढ़ाता हाथ कोई थामता है दूसरा
प्रीत तो पूरी समर्पित मीत के आह्वान पर
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मैं किसी से नहीं अपने आप से नाराज़ हूँ
शायद इसलिए इस हाल में आज हूँ
कितने जतन करो कुछ न निकलेगा मुँह से
मैं जिंदगी से रूठा एक बिगड़ा हुआ साज हूँ
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बच्चे पतंग हैं और उनके मन में है उड़ान
भोली शरारतों में बरसता मधुर है गान
मंदिर ओ मस्जिदों में जाएँ क्यूँ हम भला
बच्चे में ज्ञान गीता का, बच्चे में है कुरान
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