अक्सर जो पुकारते हैं बादलों को
वे देखते हैं बादलों को बरसता
दूर, बहुत दूर कहीं।
प्यास होती जाती सघन
सूखता कंठ, उतरती ऑंखों में नमी।
दिन, महीने, बरस बीतते
अनबुझ प्यास लिए नम ऑंखों से देखते जिस ओर
उसी पल, ठीक वहीं बरस जाता बादल का कोई नन्हा टुकड़ा,
आशिकों की बिरुदावली में वे कहलाते प्यासे पीर।
केटी
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