भेड़िए के सामने।
एक छुपा है अपने घरौंदे में,
एक बेफिक्र है कि भेड़िए का मुंह उसकी तरफ नहीं है,
एक चाहता है भेड़िया भाग जाए, पर वो मशाल नहीं जलाता,
पेंटिंग बनाता है मशाल की, अग्नि-चित्रों की,
एक कविताएं लिख बाहर फैंक देता है अपनी आरामगाह से,
चाहता है कि लोग पढ़ें, जगें और भेड़िए से भिड़ें,
वो एक जो खड़ा है डट कर
भेड़िए के सामने
जान लगा कर लड़ेगा और मरेगा,
भेड़िया उसका खून पीएगा, नोचेगा गोश्त,
फिर मुड़ेगा
उस दूसरे, तीसरे और चौथे आदमी की ओर,
जंगल का राज जानते नहीं वे
कि भेड़िया पहले एक को पचाता है
फिर दूसरी ओर मुंह करता है।
केटी
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