हर किसी का अपना अलग ही होता है इश्क़ का ककहरा
हर कोई रचता है अपने इश्क़ का नया सरगम
हर किसी के इश्क़ का इन्द्रधनुष चमचमाता नहीं सात रंगों में
कि शून्य से अनंत रंग रच लेता है हर कोई अपने इश्क़ में।
सर्दियों की ठिठुरन या कि गर्मी का ताप
बारिश की रिमझिम से उठता आलाप
हर किसी का इश्क़ देता हर मौसम को अलग अर्थ,
बादल, नदी, पहाड़, दूर तक फैला घना जंगल
या कि अलगोजे की तान-सा पसरा मीलों लंबा रेगिस्तान
हर किसी के इश्क़ में रहते नहीं एक से।
रंग, रूप, ध्वनि, गंध, स्वाद बदल जाते हैं इश्क़ में
अपनी ही दुनिया रचता है हर किसी का इश्क़ निराला।
केटी
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