सुनो बच्चो कहानी!
एक थी चिड़िया। उसके थे चार बच्चे। सुबह-सुबह बच्चे लगे चिल्लाने।
"समझ गई, समझ गई, तुम्हें भूख लगी है। थोड़ा
सब्र करो, मैं अभी तुम्हारे खाने के लिए कुछ लाती हूँ," चिड़िया ने कहा। चिड़िया फुर्र से उड़ कर गई और कहीं से कुछ बेर ले आई।
दो-दो बेर उसने सब बच्चों को बाँट दिए। सभी ने मीठे-मीठे बेरों का मज़ा लिया।
चिड़िया का सबसे छोटा बच्चा सोचने लगा कि क्यों न कोई ऐसी तरकीब की जाए कि रोज़
मीठे-मीठे बेर खाने को मिलें। अचानक उसके मन में आया... अच्छा क्या आया होगा बताओ
तो ज़रा... चलो मैं ही बताता हूँ। उसके मन में आया कि एक बेर का पेड़ लगाना चाहिए। उसने अपने हिस्से का एक बेर बचा लिया। अपनी नन्ही-सी चौंच में उसे
पकड़ जंगल के एक कोने में मिट्टी के नीचे ले जाकर उसे दबा दिया। आकर अपने भाइयों से
कहने लगा, “सुनो-सुनो
मैंने बेर का पेड़ लगाया है। रात को बरसात होगी और मेरा पेड़ बहुत बड़ा हो जाएगा। फिर
हम उस पर खेलेंगे। खूब जी भर के बेर खाएँगे।” तीनों बड़े भाई
ज़ोर से हँसे, कहने लगे, “अरे
छोटू, तू तो मूर्ख है। ऐसे ही कोई पेड़ उगता है! उसके लिए
बहुत मेहनत करनी पड़ती है।” ऐसा कहकर सारे भाई उसका मज़ाक
उड़ाने लगे। छोटा बच्चा बहुत उदास हो गया। पर फिर उसने मन ही मन पक्का निश्चय कर
लिया कि चाहे जो कुछ हो जाए वह पेड़ लगाएगा ज़रूर।
“रात बीत गई, पर बरसात तो हुई ही नहीं। अब क्या किया जाए! पेड़
उगेगा कैसे!,” यह सोच कर चिड़िया का बच्चा चिंतित हो गया।
उड़ते-उड़ते नदी पर पहुंचा। उसने देखा नदी में डमडम हाथी नहा रहा था। बस बन गई बात!
उसने प्यार से डमडम को पुकारा, “डमडम दादा! मेरी एक मदद करोगे?” डमडम बोला, “बताओ क्या करना है।” छोटू ने जब सारी कहानी
सुनाई तो डमडम हाथी अपनी लंबी-सी सूँड में पानी भर कर चल पड़ा और उस जगह पर बरसा
दिया , जहाँ मिट्टी में बेर दबा था। पानी का पड़ना था कि
मिट्टी तो बह गई और बेर ऊपर आ गया। अब क्या किया जाए! यह तो गड़बड़ हो गई। छोटू
रूआँसा हो गया। तभी उसे लक्की चिड़िया की आवाज़ सुनाई दी। "क्या बात है प्यारे
बच्चे! तुम उदास क्यों बैठे हो!" छोटू ने लक्की चिड़िया को बेर के बारे में
बताया। लक्की ने कहा, बेटे! तुम्हें पहले एक गड्ढा खोदना चाहिए, उसमें बेर को दबाना चाहिए, तब पानी देना चाहिए।"
छोटू बोला, "लक्की आंटी मैं गड्ढा कैसे खोदूंगा?" "चलो मैं तुम्हारी मदद करती हूँ," लक्की ने कहा। और फिर लक्की ने अपनी तीखी चौंच से एक गड्ढा खोद दिया।
फिर क्या था, अपना छोटू तो खुश हो गया। लक्की ने बेर को उसमें
डाल कर उसके ऊपर खूब सारी मिट्टी डाल दी। दोनों मिलकर फिर डमडम के पास गए। डमडम ने
कहा, "अरे बाबा, मैं रोज़ थोड़ा थोड़ा पानी उस
जगह पर डाल दूंगा।” छोटू खुशी से चहकने लगा। लक्की भी छोटू को प्यार कर अपने
रास्ते चल पड़ी।
अब तो सुबह होते ही छोटू लपक कर उस जगह पहुँच जाता
जहाँ उसने बेर दबाया था। उसे लगता आज पेड़ लग गया होगा। पर कुछ नहीं देख कर कुछ पल उदास
होता तो दूसरे ही पल खुद को हिम्मत बँधाता। और फिर करते करते वो सुहानी सुबह भी आई।
उस रोज़ छोटू आँखेँ मसलता हुआ, कुछ नींद में और कुछ जागा हुआ उसी जगह पर पहुँचा तो खुशी के मारे चीख उठा।
वहाँ एक प्यारा-सा, नन्हा-सा कोमल पौधा उग आया था। उसने अपने
सारे दोस्तों को बुलाया और उन्हें अपना पेड़ दिखाया। “ये मेरा पेड़ है,” कहते हुए छोटू खुशी से फूला नहीं समाता था। दिन बीतते चले गए। पौधा बड़ा होता
गया। छोटू दिन भर अपने दोस्तों के साथ उसी पौधे के पास खेलता रहता था। डमडम हाथी को
याद दिलाना भी नहीं भूलता था। “डमडम दादा, याद है ना, मेरे पेड़ को पानी देना है।” डमडम हँसता हुआ कहता, “ये
भी कोई भूलने की बात है छोटू!” कभी-कभार लक्की चिड़िया उधर से गुजरते हुए पूछ लेती, “क्यों छोटू बेटे, तुम्हारा पेड़ अब कितना बड़ा हो गया
है?” छोटू गर्व से बताता, “अरे लक्की आंटी, अब तो खूब बड़ा हो गया है।” हवाएँ बदलीं, गर्मियाँ गईं, बरसात आई, बरसात की फुहारें बीतीं और कड़कता जाड़ा आया...
एक के बाद एक मौसम बदलने लगे। देखते ही देखते कल का छोटू भी बड़ा हो गया। अब तो वो अकेला
ही दूर दूर तक उड़ने चला जाता था। जंगलों, पहाड़ों, नदियों के आसपास खूब डोलता। पर अपने पेड़ से वो उतना ही प्यार करता था। घर
आते ही सबसे पहले अपने पेड़ को संभालता था। एक दिन खूब बारिश हुई। छोटू दोपहर तक घर
से बाहर नहीं निकल पाया। दोपहर बाद जैसे ही बारिश थमी, वो घर
से निकल अपने पेड़ के पास पहुँचा। उसने देखा पेड़ पर लाल लाल मोतियों के झुंड लगे थे।
छोटू तो नाचने लगा। भाग कर अपने सारे दोस्तों को बुला लाया और कहने लगा, “देखो दोस्तो, अपने पेड़ पर बेर लगे हैं-खूब सारे बेर।”
सबने मिलकर मीठे-मीठे बेर खाए। तभी छोटू के तीनों भाई हाँफते हुए वहाँ आए और बोले, “छोटू, तू तो हमारा प्यारा भैया है, क्या हमको अपने पेड़ से बेर नहीं खिलाएगा!” तीनों भाई छोटू की खुशामद करने
लगे। छोटू ने कहा, “जाओ यहाँ से, एक बेर
भी नहीं मिलेगा... याद है उस दिन तुम लोगों ने क्या कहा था!... तब तो सब मिलकर मेरा
मज़ाक उड़ा रहे थे, अब आए हैं बेर खाने।”तीनों भाइयों ने छोटू से
अपने किए की माफी मांगी। डमडम हाथी ने कहा, “छोटू ने कितनी मेहनत
से यह पेड़ लगाया है। हम सब इसके बेर खा रहे हैं। हमें छोटू से सीख लेनी चाहिए। हम सब
खूब सारे पेड़ लगाएंगे।” सारे जानवरों ने छोटू को खूब प्यार किया और उसे शाबासी दी।
तो ये थी कहानी। पर हाँ, एक बात तो मैं बताना भूल ही गया कि
आज भी जंगल में उस बेर के पेड़ को सब जानवर ‘छोटू का पेड़’ कहते हैं।
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