मन की धारा ...... जैसी भी बह निकली ...... कुछ कविताएं, कुछ कहानियाँ, कुछ नाटक ........ जो कुछ भी बन गया ........ मुझे भीतर तक शीतल कर गया ......
कण-कण कर बदलता
बदलता जाता निरंतर
और एक वो क्षण ऐसा भी आता
कि बदल जाता समूचा मैं एक भीनी सुगंध में।
होता यह तब
जब साँसों के एकदम करीब आ
छू लेता वो मुझे।
केटी ****
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