पेड़ जब उखड़ता है तेज अंधड़ में
गिर जाता धरती पर
अस्थमा के बलगम भरी छाती-सा हाँफता
लेता गहरी गहरी साँस
आखिरी साँस की इंतजार में।
किसी अदृश्य जड़ की बाल से भी बारीक कली
रह जाती जुड़ी धरती से
ठेठ गहरे पाताल में।
वो अदृश्य जड़ जो करती महसूस
खुद से बहुत दूर पड़े पेड़ का दुख
पर दिखती नहीं किसी को
कहती नहीं कुछ भी
दुख में बनती चिर सहभागिनी
वो... पीड़ा है।
केटी
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