मन की धारा ...... जैसी भी बह निकली ...... कुछ कविताएं, कुछ कहानियाँ, कुछ नाटक ........ जो कुछ भी बन गया ........ मुझे भीतर तक शीतल कर गया ......
जिंदगी साफ़ महीन चादर-सी
धुली धुली हर सुबह
ढक लेती सब कुछ।
सिमटते हुए हर लम्हे को
एक मासूम तबस्सुम देकर
समा लेती खुद में।
अंतहीन तहों में लिपटी
चादर जिंदगी की।
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