मन की धारा ...... जैसी भी बह निकली ...... कुछ कविताएं, कुछ कहानियाँ, कुछ नाटक ........ जो कुछ भी बन गया ........ मुझे भीतर तक शीतल कर गया ......
जब तक रहती चेतनता
तब तक रहती अहिल्या।
ज्यों-ज्यों चेतनता खोती
जड़ता छाती जाती
बन जाती फिर किसी दिन एक सिला।
तब शुरू होती प्रतीक्षा
लम्बी... बहुत लम्बी प्रतीक्षा
किसी के पावन स्पर्श की।
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