मन की धारा ...... जैसी भी बह निकली ...... कुछ कविताएं, कुछ कहानियाँ, कुछ नाटक ........ जो कुछ भी बन गया ........ मुझे भीतर तक शीतल कर गया ......
वो सपना
जो सोने नहीं देता था उसको
ढूंढ ही लेगा किसी बच्चे की आँख
पाएगा ठिकाना।
उड़ाएगा उसकी भी नींद
जगाएगा उसे भगाएगा उसे भी।
बनेगा वो भी एक दिन कलाम,
या किसे पता उससे भी बड़ा।
ये कलाम का सपना है दोस्त
माटी में सोया है
अंकुरित तो होगा ही।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें