रुक जा ओ मचलती हुई लहर
ज़रा थम जा,
विचार करले।
ठानी है तूने उफनता दरिया पार करने की
तेरी रगों में सिर्फ हिम्मत भरी है
आँखों में सजे हैं सपने।
नाचती, कूदती, किलकारियाँ भरती
बढ़ती जाती है तू
रुकना सीखा ही नहीं तूने।
पर होशियार ए मचलती हुई लहर! ....
किनारे प्यासे हैं।
हो जाएगी तू विलीन
खो देगी अपने आपको
चीख तेरी उठेगी और घुट के रह जाएगी।
इसलिए इससे पहले कि छुए तू किनारा
चल देना फिर एक लम्बी यात्रा पर
तेरी ये उछाल,
रगों में ये हिम्मत
होठों पे ये किलकारियाँ
बनी रहे इस दरिया में
सदा सदा के लिए।
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