सूर्य - दो चित्र
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उदय
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प्रतिदिन तुम आते
हरते अँधेरा
पथ रौशन कर जाते।
बढ़ जाती आस्था
होता पुष्ट हौसला
तुम्हारे आने से।
जान गया हूँ अब
जब जब भी अँधेरा गहराएगा
तुम आओगे
पथ प्रकाशित कर जाओगे।
हे मेरे जीवन के सूर्य!
मेरा प्रणाम स्वीकार करो। ☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
अस्त
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वो जो फुफकार रहा था सुबह
दहाड़ रहा था दिन में
उबल रहा था अपने ही तेज में।
न जाने क्यों उदास-सा
मुँह लटकाए खड़ा था
दूर क्षितिज के कोने।
आह रे जीवन!
वाह रे जीवन!
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