मन की धारा ...... जैसी भी बह निकली ...... कुछ कविताएं, कुछ कहानियाँ, कुछ नाटक ........ जो कुछ भी बन गया ........ मुझे भीतर तक शीतल कर गया ......
थप-थप थप-थप
सौंधी खुशबू घोल जाता है
हर बारिश में कोई
मेरे स्मृति-जगत में।
रात भर करवटें बदल
झाड़ता हूँ पैरों की अंगुलियों पे चिपकी बालुई रेत
पर जाने क्यों हट नहीं पाती पूरी तरह
और मैं यूँही करवटें बदलता रहता हूँ रात भर,
हर बारिश में।
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