मन की धारा ...... जैसी भी बह निकली ...... कुछ कविताएं, कुछ कहानियाँ, कुछ नाटक ........ जो कुछ भी बन गया ........ मुझे भीतर तक शीतल कर गया ......
अच्छा हो या हो बुरा
पाप हो या हो पुण्य
कोई कैसे जिम्मेदार हो सकता है
अकेला एक।
जबकि होते हैं शामिल इस लेन देन में
लोग अनेक।
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