शनिवार, 12 सितंबर 2020

यात्रा

अगर ये धरती गोल है

तो पहुँच ही जाऊँगा तुम तक

एक दिन।

चल पड़ा हूँ मैं इस छोर से

बस तुम रुकी रहना ठीक उसी जगह, 

उसी जगह जहाँ बरसों पहले 

रोपा था यादों का बिरवा हमने। 

अक्षांश और देशांतर रेखाओं पर झूलता, खोजता

बढ़ रहा हूँ तेरी ओर,

कि जाने क्यों लोग बजाते हैं तालियाँ

नवाजते हैं उपाधियाँ

कहते हैं इन्हें मेरी उपलब्धियाँ,

जबकि मैं जानता हूँ

ये तो मेरे बढ़ते कदम हैं तेरी ओर,

और मैं पहुँच ही जाऊँगा तुम तक
एक रोज, 

अगर ये धरती हुई गोल

और तुम प्रतीक्षारत रहीं

यादों के बिरवे तले।



केटी
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