बुधवार, 9 जनवरी 2019

क्रोएशियन लेखक मीरो गावरान के दो नाटक और 'एक चुप्पे शख्स की डायरी'

पुस्तक-चर्चा :
1. एक ऐक्टर की मौत- (क्रोएशियन लेखक मीरो गावरान के नाटक का सौरभ श्रीवास्तव द्वारा हिन्दी रूपांतरण- मूल्य 150 रु.)

2. द डाॅल- (क्रोएशियन लेखक मीरो गावरान के नाटक का सौरभ श्रीवास्तव द्वारा हिन्दी रूपांतरण- मूल्य- 150 रु.)

3- एक चुप्पे शख्स की डायरी- (कवि मायामृग रचित गद्य-काव्य- मूल्य- 50 रु.)

तीनों ही पुस्तकें बोधि प्रकाशन, जयपुर से छपी हैं। मीरो गावरान एक समकालीन क्रोएशियन लेखक हैं। विश्व की 40 भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद हो चुका है। हालाँकि नाटक 'एक ऐक्टर की मौत' वर्ष 1995 में लिखा गया और 'द डाॅल' वर्ष 2012 में, फिर भी इनकी विषयवस्तु में एक साम्य है और वो साम्य इतने सुदीर्घ समय अंतराल में पर्याप्त विकसित होते हुए भी दिखता है। यह साम्य है 'स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की पुनर्व्याख्या।' हिन्दी नाटकों में मोहन राकेश के नाटक 'आधे-अधूरे', 'लहरों के राजहंस' जिस तरह गहराई तक जाकर अपने संवादों, नाट्य-भाषा और दृश्य-विधानों के माध्यम से स्त्री-पुरुष अन्तर्सम्बन्धों की कई सतहों पर पड़ताल करते हैं, उसी तरह मीरो गावरान के ये नाटक जिन्हें सौरभ श्रीवास्तव ने भारतीय परिवेश में पुनर्रचित किया है, इसी दिशा में नया संधान करते दिखाई पड़ते हैं। रूपांतरकार सौरभ श्रीवास्तव स्वयं एक उत्कृष्ट रंगमंच अभिनेता और निर्देशक हैं। दो दर्जन से अधिक नाटकों के लगभग 200 प्रदर्शन कर चुके हैं।
उच्च कोटि के समकालीन विश्व-साहित्य को हिन्दी भाषी पाठकों और रंगमंच दर्शकों तक पहुँचाने के लिए सौरभ श्रीवास्तव का यह प्रयास अत्यंत श्लाघनीय है।
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'एक चुप्पे शख्स की डायरी' राजस्धान के वरिष्ठ कवि संदीप 'मायामृग' रचित गद्य-काव्य है। मैंने व्यक्तिगत रूप से मायामृग को जोधपुर शहर में आयोजित चार या पाँच साहित्यिक कार्यक्रमों में बोलते हुए सुना है। हर बार मुझे यही लगा कि यह शख्स बोल नहीं रहा, कविता पढ़ रहा है; और कविता भी जादुई। इस पुस्तक में मायामृग उसी भंगिमा में पूरी तरह खुल के उभरते हैं। खामोश समन्दर अपने भीतर कितने तूफान और लहरों का कितना हाहाकार छुपाए होता है, यह अंदाजा करवाती है 'एक चुप्पे शख्स की डायरी।' लेखक की सबसे बड़ी खूबी इसमें दिखाई पड़ती है वो है उसकी भाषा, उसके शब्द। घनीभूत संवेदनाओं को कम से कम शब्दों में काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत करना पाठकों को हर पृष्ठ पर चौंकाते हुए आगे बढ़ाता जाता है। ऐसा लगता है कि हम किसी ई.सी.जी. मशीन के निरंतर ऊपर-नीचे होने वाले ग्राफ पर सवार हो गए हों और बहते जा रहे हों। यह पुस्तक आम पाठक के साथ नवोदित गद्य लेखकों और कवियों दोनों के लिए समान आनंददायी तथा सहायक पुस्तिका का भी कार्य करती है।
पुस्तक का एक आकर्षण इसका बाह्य स्वरूप भी है जो किसी डायरी या पाॅकेट-बुक जैसा है जिसमें 1 से 99 पृष्ठ अंकित हैं। हर पन्ने पर नई बात है और 100 वाँ पन्ना खाली है, जिसके नीचे लिखा है-
"हर डायरी की नियति है...अधूरा रह जाना"
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केटी
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नदी

नदी-1
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मौन रहो

ध्यान से सुनो

नदी की गुनगुन।

नदी-2
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वो नदी थी

मैं तिनका

मैं ढूँढता रहा उसे

वो बहाती रही मुझे

और एक दिन

... सफर खत्म

... खोज अधूरी।


नदी-3
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एकदम मौन होता था

तब वो सुनाई देती थी

कभी अलस दुपहरी में

किसी नीली चिड़िया-सी चहचहाती

आकर चौंका देती थी

दिन महीने और वर्षों को पार कर

खोए हुए स्मृति-पलों में तैरने लगता था मैं

वो कौन थी जो नदी बन मुझमें बहती थी।

केटी
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मंगलवार, 1 जनवरी 2019

अपरिभाषित

अपरिभाषित
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अतीत के कुछ पल ऐसे

जो अटक गए जाने कैसे

कि जाते ही नहीं बीत

लगते ही नहीं अतीत

हर पल रहते सामने

वो गहरी आँखों से देखना

बंद लबों में मुस्कराना

बहुत कुछ कहकर भी कुछ न कह पाना

क्या कहूँ इन पलों को

वर्तमान या अतीत, या और कुछ

खोजो पारिभाषिक ग्रन्थों में

इनके लिए कोई नाम

तब तक मैं पुकारता रहूँगा इन्हें

'प्यार' कहकर।

केटी
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