रविवार, 30 सितंबर 2018

कामना-काॅम्प्लेक्स

(1)
पापा! आप और मम्मी हर रोज

छत से देखा करते थे चाँद,

अब वो क्यों नहीं दिखता?

गुड़िया! तेरे होने के साथ ही

सड़क पार बनने लगा था 'कामना-काॅम्प्लेक्स'

तेरे बड़े होने तक वो इतना बड़ा हो गया

कि ढक लिया उसने

तेरे हिस्से का आकाश, तेरे हिस्से का चाँद।

(2)
अभी कुछ दिन पहले तक

जब बिके नहीं थे इसके फ्लैट

बेसमेंट में इसके रहता था

दिहाड़ी मजदूर श्यामुआ का परिवार।

दिन की मजदूरी, रात की चौकीदारी

बदले में थी रहने को ठौर

मालिक की कृपा और कुछ पैसा भी।

एक दिन बहुत धूमधाम हुई

श्यामुआ के पूरे परिवार ने सजाई

कामना-काॅम्प्लेक्स पर बिजली की लड़ियाँ

कई बड़े लोग आए, खाना-पीना हुआ

फ्लैटों में परिवार बस गए

उसी रात श्यामुआ, उसकी बीवी और तीन बच्चे

सड़क पार फुटपाथ पर बसा रहे थे

अपना नया घर।

चन्द्र-दर्शन

चन्द्र-दर्शन
*********

पंचमी का चाँद भी

इतना बड़ा होता है क्या!

पूर्णिमा के बराबर न सही

पर कुछ कुछ वैसा ही

या पाव भर कटा हुआ कहलो।

देखते ही ध्यान आता है वो हिस्सा

जो है ही नहीं।

इसी में छुपी है

पंचमी से पूर्णिमा तक की भावी यात्रा

दस तिथियाँ, दस दिन-रात

कितनी बार उगने और कितनी ही बार बुझने की पीड़ा

पूर्णता को पाने की चिरंतन अकुलाहट।

काले आसमान में टँगा हुआ

ये पाव भर कटा हुआ चाँद

करवा गया मूर्त में अमूर्त के दर्शन,

पंचमी का यह चाँद

कोई दार्शनिक तो नहीं शैलेन्द्र ढड्डा?

सोमवार, 24 सितंबर 2018

मार्क्स में मनु ढूँढती


आसपास के मासूम पलों पर रची कहानियाँ- मार्क्स में मनु ढूँढती

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कितना कुछ आसपास से गुज़र जाता है और हम उसमें से निकलने के बाद भी उसे महसूस नहीं कर पाते। हमसे टकरा कर जीवन की आपाधापी में खो जाने वाली उन ध्वनियोंचित्रोंआकारों और मनोस्थितियों को रुक कर देख पाने का तो समय ही कहाँ है! ऐसे ही निर्मम समय में युवा कहानीकार माधव राठौड़ एक आस जगाते हुए अपनी कहानियाँ उन आसपास के पलों पर रचते हैं।
उनका सद्य प्रकाशित कहानी-संग्रह ‘मार्क्स में मनु ढूँढती’ इसी तरह की 20 कहानियों से सजा हुआ है।
आज का समय अपने आप में एक बिखरन, टूटन और मदहोशी लिए हुआ है। एक दूसरे के प्रति सरोकार, ज़िम्मेदारी और प्यार लगभग समाप्त होकर एक अंधे स्वार्थ से जीवन परिचालित होने लगा है। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए वर्तमान हिन्दी साहित्य में युवा कहानीकारों ने सार्थक हस्तक्षेप किया है। अपने समय को मूर्त छवियों में रचा है। माधव राठौड़ राजस्थान की मरुभूमि से आते हैं। गाँव से शहर में आना ही व्यक्ति को चकाचौंध से भर देता है। किन्तु जब उनका संवेदनशील मन इस भीड़ और कोलाहल को सर्जक-दृष्टि से देखता है तो यहाँ सब एकदम अकेले, बेबस और भयग्रस्त दिखाई पड़ते हैं।
इस दौर ने हर किसी को नितांत एकाकीनीरस और स्व-केन्द्रित बना दिया है। ऐसे में हर व्यक्ति अपने सुख और दुख को अकेले झेलने के लिए अभिशप्त है। माधव अपनी कहानियों में इन एकाकी ज़िंदगियों की पड़ताल करते हैं और पाठक को तुरंत अपने जान-पहचान केकुछ देखे-अनदेखे चेहरे याद आने लगते हैं। एकाकीपन का भय रीढ़ की हड्डी में जैसे सिहरन पैदा करने लगता है और तब लेखक पाठक के मन की बात को होले से टाँक देता है। कहानी ‘क्वाटर नंबर-73’ की कुछ पंक्तियाँ देखिये-
रात के गहराने के साथ वह डर से भर गया कि अगर वो मर गया तो उसके आसपास तो कोई नहीं आएगाजब शव गंध मारेगा तब शायद कुछ करेंगे। वो देर तक खुद की मौत को लेकर सोचता रहा।
जीवन में आए इस एकाकीपन और नीरसता के विविध रूप माधव की लगभग सभी कहानियों में रिफ्लेक्ट होते हैं। उकताया हुआ एक दिन’, खालीपन कहानियाँ इसी तरह की हैं।
स्त्री-पुरुष संबंध...! यह एक ऐसा विषय है जिसे हर दौर में साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं का केंद्र बनाया है और कहानीकारों ने तो जमकर इस पर कलम चलाई है। बदलते समय ने इस संबंध को सर्वाधिक प्रभावित किया और कहानियाँ भी साथ-साथ बदलती चली गईं। अस्सी और नब्बे के दशक में जब हमारे शहर में हसन जमाल साहब, हबीब कैफी साहब, डॉ॰ सत्यनारायण, रघुनंदन त्रिवेदी, डॉ॰ हरीदास व्यास, योगेन्द्र दवे मुरलीधर जी वैष्णव कहानियाँ लिख रहे थे तो वे कहानियाँ स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में प्रेम, त्याग और समर्पण को बयाँ कर रही थीं। किन्तु आज के फास्ट फूड के जमाने में जब तकनीक और कैरियर की रेस ने मनुष्य से उसकी संवेदना छीन ली है तो स्त्री-पुरुष संबंध प्यार के उथलेपन, केवल दैहिक खालीपन को भरने की लालसा और घोर निराशा के दस्तावेज़ बन कर रह गए हैं। आज हमारे समकालीन युवा कहानीकार किशोर चौधरी, संजय व्यास, तसनीम, दिव्या विजय, डॉ॰ शालिनी गोयल राजवंशी, उपासना, नवनीत नीरव, डॉ॰ फतेह सिंह भाटी इस संबंध में आए बदलाव की कहानियाँ लिख रहे हैं। माधव राठौड़ के इस कहानी संग्रह में मार्क्स में मनु ढूँढती’, उदास यादें’, अभिशप्त वरदान’, शुक्रवार को शुरू किया काम ज़रूर पूरा होता है’, तयशुदा दूरियों के साथ जीना’, अधूरा वजूद’, ढलती साँझ की धुन्ध’, कहानियों में इसी के विविध रूप साकार हुए हैं।    
दोहरे मापदंड हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है। एक ओर उच्च वर्ग है जहाँ हर बुराईहर दोष को आवरणों में छुपा कर उसे शालीन बना लिया जाता है तो दूसरी ओर निम्न वर्ग है जो कि अपनी अच्छाईबुराईगुणदोष सभी को खुलेपन से स्वीकारते हुए जीवन से संघर्ष करता है। दोनों वर्गों में किसी लड़के और लड़की के प्यार की यात्रा किन-किन मोड़ों से गुजरते हुए कहाँ तक पहुँचती हैइसमें भी वर्गभेद किस तरह निर्णायक कारक की भूमिका निभाता हैइसका सहज चित्रांकन माधव की कहानियों में मिलता है। मासूम प्यारलिव-इन रिलेशनशिप और इसकी विसंगतियों जैसे अति सूक्ष्म किन्तु ज्वलंत विषयों को छूती हुई कहानी ‘मँगती’ में स्त्री-पीड़ा का छुपा हुआ स्वर कैनवास पर फैले मटमैले रंग की तरह पूरे कथा-चित्र को एक विशिष्टता देता है। कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं-
गमदू उसे सपने दिखाता है उसे फिल्म दिखाएगाशहर घुमाएगाहमारी शादी में भी बैंड बजाएँगे। पर वो अब मँगती नहीं रहीदीवानी नहीं रही।
शीर्षक कथा ‘मार्क्स में मनु ढूँढती’ को इस कहानी-संग्रह की प्रतिनिधि कहानी तो नहीं कहा जा सकता किन्तु विचारधाराओं के अंत के इस दौर में जीवन के उस बिन्दु को उकेरने की कोशिश अवश्य कहा जाएगा जहाँ कहानी के अंत में लेखक नायिका के लिए कहता है-
उसे समाधान मिल गया। वो न मार्क्स के लिए न मनु के लिए न समाज के लिए जिएगी। वो सिर्फ खुद के लिए जिएगी। खुद में उतर खुद को खोजेगी और खुद को ही पाएगी।
वैसे तो कमोबेश सभी कहानियों में माधव कहानी कहते हुए से प्रतीत होते हैं पर एक कहानी ऐसी भी है जिसमें इनकी किस्सागोई खुलकर सामने आती है और वो कहानी है- ‘इमली फाटक के उस पार।
इस कहानी में माधव एक खिलंदड़ बातपोश की तरह कहानी के दृश्यों में पाठकों को बांधते चलते हैं। पाठक पूरी कहानी में कथा-नायक बाबू भाई के परवान चढ़ते इश्क़ और आसपास की नित बदलती छटा में सराबोर होकर मस्ती लेता रहता है पर कहानी के अंत में जैसे खुद को ठगा-सा महसूस करने लगता है। अचानक दुख का सघन भाव पाठक को बाबू भाई की लाश के इर्दगिर्द खड़ी भीड़ का हिस्सा बना देते हैं। कहानी विधा के प्रख्यात आलोचक और देश के वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं- पाठक चमत्कार का स्वागत करता है किन्तु वह रचना से चमत्कृत नहीं भावित होने की आशा करता है। इसके लिए दृश्यताअनिवार्य कथनपात्रों की अनुभाव चेष्टाएँ- जिनमें सर्वाधिक मार्मिकतोत्पादक मौन होता हैकाम आती हैं। ये शिल्प के रूप हैं जो रचना की निर्मिति करते हैं।माधव अपनी कहानियों में शिल्प के इन सभी रूपों को संजोए हुए हैं।
समय की आपाधापी ने हमारे गांवों को भी बदला है। इस सबके बाद भी बहुत कुछ ऐसा है जो जस का तस है। सुदूर रेगिस्तान की गाँव-ढाणियों के जीवन के माधव आई-विटनेस रहे हैं। उनकी कहानियाँ उधड़े ख्वाब’, बेजुबाँ दर्द और लाज उसी ग्रामीण जीवन के रंगों को ठेठ उनके तेवर में पेश करती है। कहानी लाज में लोक तत्वों का प्रचुर आस्वाद है। लोक गीत, परम्पराएँ सब देखते ही बनते हैं। दृश्यों की विविधता इसे एक फिल्म का कैनवास देती है।
कुछ कहानियाँ ऐसी भी हैं जो पूरी बन नहीं पाईं या उनका स्वरूप उपन्यास विधा के अधिक निकट था। रेड सर्किल कहानी एक ट्रांसजेंडर की कहानी है जो किसी एनजीओ द्वारा एड्स आवेयरनेस सेमिनार में भाग लेने जा रही है। साथ के साथ वो ट्रेन में तालियाँ बजाकर यात्रियों से पैसा भी मांग रही है। उसने अपनी जवानी एक वेश्या के कोठे पर बिताई है। उसका प्रेमी भी है, उसकी गोद ली हुई बेटी भी है। एक निश्चित समय अंतराल, बहुत सारे चरित्रों और घटनाओं के साथ अगर ये कहानी बढ़े तभी मुकम्मल हो सकती है। ऐसे में प्रख्यात कहानी समीक्षक-आलोचक संजीव कुमार की बात याद आती है कि कभी-कभी कोई कहानी लेखक के मन में बहुत तेज़ी से प्रवेश कर जाती है और लेखक उसे संभालने और कथा-रूप देने में कहानी से एक्ज़िट को तय नहीं कर पाता और कहानी अपने क्लाइमेक्स को नहीं छू पाती। इसी तरह साँझ की धूसरता एक कहानी है। प्राइवेट  हास्पिटल्स में रोगियों और उनके परिजनों से होने वाली लूट और शोषण  को दर्शाती इस कहानी का फ़लक भी उपन्यास का है।
माधव बहुत अध्ययनशील साहित्यकर्मी हैं। इन्होंने भारतीय साहित्य, दर्शन, अध्यात्म और राजनीति की पुस्तकों के साथ-साथ विश्व साहित्य का भी खूब अध्ययन किया है। जगह-जगह पर उनकी कहानियों में उनके रिफ़्लेक्शन्स मिलते हैं।   
पाठक को पढ़ते हुए अक्सर यह लगता है कि शायद ये अंत नहीं हैया इसे कुछ और होना चाहिए थापर माधव की कहानियाँ अंत तक न ले जाकर उन पात्रोंउन घटनाओंउन संवेदनाओं की भूलभुलैयाँ के बीच हमें धकेलती हैं जहाँ हम छटपटाते रहते हैं और जीवन को तलाशने की कोशिश करते रहते हैं।
पुस्तक बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित हुई है। पुस्तक का आवरण चित्र कहानियों के मनोभाव को प्रकट करता है। इस कहानी-संग्रह के माध्यम से वर्तमान के युवा कहानीकारों में माधव राठौड़ अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज़ करवाते हैं।
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कमलेश तिवारी
169-दिलीप नगर
लाल सागर
जोधपुर
संपर्क: 9829493913
ई-मेल : kamalesh.tewari.65@gmail.com