गुरुवार, 17 जून 2021

भेड़िया मुझे नहीं खाएगा

वो एक खड़ा है डट कर 

भेड़िए के सामने।

एक छुपा है अपने घरौंदे में,

एक बेफिक्र है कि भेड़िए का मुंह उसकी तरफ नहीं है,

एक चाहता है भेड़िया भाग जाए, पर वो मशाल नहीं जलाता,

पेंटिंग बनाता है मशाल की, अग्नि-चित्रों की,

एक कविताएं लिख बाहर फैंक देता है अपनी आरामगाह से,

चाहता है कि लोग पढ़ें, जगें और भेड़िए से भिड़ें,

वो एक जो खड़ा है डट कर

भेड़िए के सामने

जान लगा कर लड़ेगा और मरेगा,

भेड़िया उसका खून पीएगा, नोचेगा गोश्त,

फिर मुड़ेगा

उस दूसरे, तीसरे और चौथे आदमी की ओर,

जंगल का राज जानते नहीं वे

कि भेड़िया पहले एक को पचाता है

फिर दूसरी ओर मुंह करता है।

केटी
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प्यासे पीर-2

अक्सर जो पुकारते हैं बादलों को 

वे देखते हैं बादलों को बरसता

दूर, बहुत दूर कहीं।

प्यास होती जाती सघन

सूखता कंठ, उतरती ऑंखों में नमी।

दिन, महीने, बरस बीतते

अनबुझ प्यास लिए नम ऑंखों से देखते जिस ओर

उसी पल, ठीक वहीं बरस जाता बादल का कोई नन्हा टुकड़ा,

आशिकों की बिरुदावली में वे कहलाते प्यासे पीर।

केटी
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