गुरुवार, 11 जुलाई 2019

मन मेरा

एक घर है मन

आते हैं, जाते हैं मेहमान- विचार हैं।

कुछ मेहमान रहते लम्बे समय तक घर में

कुछ लौट जाते कुछ समय रहकर

कुछ केवल रखते पैर अंदर

और चल देते तुरंत उल्टे मुँह।

मेहमानों से होती घर में चहल-पहल

शान्त घर लगता अशान्त।

मैं देखता रहता हूँ आते जाते मेहमानों को

या कभी कभार खाली घर को भी

शायद देखना ही मेरी नियति है।

मेहमानों से ठुँसा पड़ा है घर

घर का मालिक मैं, दूर खड़ा हूँ घर से

जाऊँ कैसे भीतर।

केटी
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स्पर्श

कण-कण कर बदलता

बदलता जाता निरंतर

और एक वो क्षण ऐसा भी आता

कि बदल जाता समूचा मैं एक भीनी सुगंध में।

होता यह तब

जब साँसों के एकदम करीब आ

छू लेता वो मुझे।

केटी
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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

पीड़ा

पेड़ जब उखड़ता है तेज अंधड़ में

गिर जाता धरती पर

अस्थमा के बलगम भरी छाती-सा हाँफता

लेता गहरी गहरी साँस

आखिरी साँस की इंतजार में।

किसी अदृश्य जड़ की बाल से भी बारीक कली

रह जाती जुड़ी धरती से

ठेठ गहरे पाताल में।

वो अदृश्य जड़ जो करती महसूस

खुद से बहुत दूर पड़े पेड़ का दुख

पर दिखती नहीं किसी को

कहती नहीं कुछ भी

दुख में बनती चिर सहभागिनी

वो... पीड़ा है।

केटी
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रविवार, 7 जुलाई 2019

जिन्दगी

जिन्दगी क्या है

कुछ नहीं

एक लम्बा इंतजार

एक सुनहरा धोखा

जिसे मन चाहे खाना बार बार।

जिन्दगी एक बंद ब्रैकेट

जिसे खोलने में गणित के नियम हार जाते हैं

या कि है ये ऐसी भूलभुलैया

जहाँ हर गली में भटकन है

अनंत भटकन, नहीं पहुँचती जो कहीं भी।

और इस जिन्दगी में मैं

जैसे बेनाम उदासियों के लिफाफे ढो रहा

घूमता है हर रोज यहाँ वहाँ

कोई अभिशप्त डाकिया।

केटी
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असीम की अठखेलियाँ

मन उलझता असीम से आई पहेलियों में

बूझता उनके हल

और खुशी से किलक उठता।

खुशी देती मन को उड़ान

उछलता मन, कूदता मन, नाचने लगता।

और फिर असीम बूढ़े बाबा सा

रखता मन रूपी बालक के गालों पर हाथ

हँसता, पेट भर हँसता और खोल देता राज

कि "बच्चे तेरा उत्तर गलत है!"

मन की गति थम जाती, होता उदास

सिसकने लगता।

रे मन! असीम की अटखेलियाँ हैं उसकी पहेलियाँ

तू हल बूझ, खोल दरवाजे

और प्रतीक्षा कर,

प्रतीक्षा उस पहेलीबाज की।

वही बताएगा हल सही था या गलत

उसके बाद खुश होना, नाचना, जी भर जश्न मनाना।

तब तक

सिर्फ पहेलियाँ हैं, बूझने की दौड़ है

और है प्रतीक्षा।

केटी
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