मंगलवार, 12 जून 2018

जानवरों की जीत


शहर की भीड़-भाड़ से दूर एक बहुत घना जंगल था। जंगल में बड़े-बड़े पेड़, कंटीली झाड़ियाँ और गहरा लसलसा दलदल था। शहर के लोग अक्सर इससे दूर ही रहते थे। उस जंगल में बहुत सारे जानवर, पशु-पक्षी रहते थे। हाथी, बंदर, चिड़िया, खरगोश, हिरण, जिराफ और भी कई सारे जानवर आपस में मिलजुल कर रहते थे। ये जंगल उनका घर था और अपने घर में वे सब चहकते रहते थे।
एक दिन शाम को गौरैया चिड़ियों का एक झुंड कहीं से उड़ता हुआ आया और जंगल के बीचों-बीच खड़े सागवान के पेड़ों की बड़ी-बड़ी डालियों पर उतर कर आराम करने लगा। सबसे पहले ये खबर लगी घुमक्कड़ी बंदर को। दिन भर इधर-उधर घूमते रहने के कारण ही सब जानवरों ने उसका नाम घुमक्कड़ी रख दिया था। जानवरों में एक वो ही था जो शहर में भी जाने कहाँ-कहाँ घूम आया था। घुमक्कड़ी की एक खास आदत थी कि वो जब भी कोई नई जगह घूम कर आता तो जंगल के सारे साथियों को वहाँ के बारे में सारी बातें बताता। एक दिन तो हाथियों के मुखिया ने हँसते हुए कह भी दिया था, “हम तो सारी उम्र इसी जंगल में रह गए, अगर ये घुमक्कड़ी न होता तो हमें तो इस जंगल के बाहर की कोई खबर ही नहीं मिलती।” इस पर ननकू गिलहरी ने मुँह बनाते हुए कहा, “आया बड़ा दुनिया घूमने वाला! हमने भी कई बार शहर देखा है, बस ये है कि हमें इस घुमक्कड़ी की तरह बातें बनाना नहीं आता।” इस पर सारे जानवर ठठा कर हँस पड़े थे।
उस दिन सारे जानवर दिन का खाना खाकर सुस्ता रहे थे कि घुमक्कड़ी पहुँच गया। “अरे सब लोग सुनो, अभी-अभी बहुत सारी चिड़ियों का झुंड सागवान के पेड़ों पर उतरा है। जाने कौन हैं, कहाँ से आई हैं, कुछ पता नहीं,” घुमक्कड़ी बोला। सारे जानवर उठ खड़े हुए। पेड़ों के नीचे जाकर हाथियों के मुखिया ने पूछा, “अरे ओ चिड़ियों! कौन हो, कहाँ से आई हो?” हाथी की गरजदार आवाज़ सुनकर चिड़ियों के झुंड में सन्नाटा छा गया। चिड़ियों के छोटे-छोटे बच्चे तो डर के मारे पेड़ के बड़े-बड़े पत्तों में दुबक गए।

तभी पेड़ की कोठर से चिड़ियों की रानी निकल कर आई और बोली, “क्या हुआ हाथी दादा, पहचाना मुझे…, मैं सोन चिरैया..., नीलवन वाली।” हाथियों का मुखिया बोला, “अरे सोन चिरैया...! इतने समय बाद...! चार-पाँच बरसातें निकल गई होंगी..., कहाँ रही अब तक?” चिड़ियों के झुंड को जैसे ही पता चला कि ये तो हमारी रानी के जान-पहचान वाले ही हैं तो उनका डर दूर हो गया और वो फिर से डालियों पर फुदकने लगा।
“क्या बताऊँ हाथी दादा, बड़े खराब दिन देखे हैं,” सोन चिरैया ने पेड़ से नीचे आकर कहा। “हाँ ये तो है, आजकल पीने के पानी की भी बहुत कमी हो रही है। एक नदी थी जो हमेशा बहती रहती थी, उसमें भी अब कभी-कभी ही पानी देखने को मिलता है,” हाथी दादा ने गहरी साँस लेकर कहा। सोन चिरैया रुआसी होकर बोली, “इतना भी होता तो कैसे ना कैसे समय निकल ही जाता दादा, पर हमारा तो पूरा घर ही उजड़ गया।” जंगल के सारे जानवर इन दोनों की बातें सुन रहे थे। मिचमिची आँखों वाले हिरण ने पूछा, “क्या हुआ सोन चिरैया, किसने तुम्हारा घर उजाड़ दिया?” सोन चिरैया ने कहा, “भैया क्या बताऊँ, मेरे तो भाग ही फूटे हैं, वरना पूरा कुनबा लेकर दर-दर क्यों भटकती फिरती।” हाथी दादा ने उसे तसल्ली दी, “चिंता मत करो बहन, हम सब तुम्हारे अपने ही हैं। हमें तुम सारी बात बता दो, शायद इससे तुम्हारा दुख कुछ हल्का हो जाए।”
गहरी साँस लेकर सोन चिरैया बोली, “हमारा परिवार नीलवन में रहता था। बहुत सुंदर घर था हमारा। सभी लोग बड़े प्यार से रहते थे। दाना, पानी, हवा किसी चीज की कमी नहीं थी। क्या पता किसकी नज़र लगी कि सब कुछ खत्म हो गया। एक दिन शहर से खूब सारे लोग बड़ी-बड़ी मशीनें लेकर आए और पेड़ों को काटने लगे। तीखे-तीखे दाँतों वाली धारदार मशीनें जब पेड़ों पर चली तो एक के बाद एक सारे पेड़ गिरने लगे। हमारे बहुत सारे साथी उनके नीचे दब कर घायल हो गए, कुछ तो बच भी नहीं पाए। मेरे खुद के परिवार के नन्हे-नन्हे बच्चे जो अभी उड़ना भी नहीं जानते थे, भारी-भारी पेड़ों के तले दब कर मर गए,” बोलते-बोलते सोन चिरैया की आँखों से आँसू बहने लगे। हाथी दादा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, “तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ सोन चिरैया। जाने क्यों लोग दूसरों के घरों को उजाड़ते हैं!... पर अब तुम चिंता मत करो और आराम से अपने परिवार के साथ यहाँ रहो।” सारे जानवरों ने एक स्वर में कहा, “हाँ-हाँ सोन चिरैया, आज से तुम सब हमारे परिवार के सदस्य हो।” रोती हुई सोन चिरैया को खुशी हुई और उसने सबको धन्यवाद दिया। हाथी दादा ने कहा, “अब तुम सब लोग कुछ खा-पी लो, फिर दिन में गपशप करेंगे।” सभी जानवर जाने लगे। अंत में रह गया घुमक्कड़ी। उसने सोन चिरैया से कहा, “मैं तो शहर में कई जगह घूम आया हूँ, तुम सब लोगों को वहाँ की बातें बताऊंगा।” सोन चिरैया मुस्कराते हुए बोली, “ अरे वाह! तब तो हमारी दोस्ती खूब जमेगी।” जल्दी ही मिलने का वादा कर घुमक्कड़ी पेड़ों की डालियों पर कूदता-फलांगता चल दिया। इसी तरह दिन गुजरने लगे। सोन चिरैया को सहारा मिला और वो भी सबके साथ घुलमिल गई। एक दिन खूब बरसात हुई। दिन भर सारे जानवर अपने-अपने घरों में दुबके रहे। पेड़ों की डालियाँ पानी में भीगकर हवा में लहरा रही थीं। जंगल की मिट्टी महक रही थी। शाम के समय बरसात थमी तो सब के सब नदी किनारे आ जुटे। नदी में थोड़ा-थोड़ा पानी चल रहा था। कुछ जानवर नदी में नहा रहे थे तो कुछ किनारे की ठंडी रेत में लोटपोट हो रहे थे। तभी घुमक्कड़ी वहाँ पहुँचा। ननकू गिलहरी ने मुँह टेढ़ा करते हुए कहा, “लो, आ गए गप्पीराम, अब सुनो इनकी बातें।” सभी जानवर हँस पड़े। घुमक्कड़ी ने बताया कि आज वो शहर में बड़े साहब के बंगले पर गया था। वहाँ बातें चल रही थीं कि साहब के नए घर के लिए लकड़ी चाहिए और उन्होंने ठेकेदार को कल ही जंगल से सागवान के पेड़ काट कर लाने के लिए कहा है। हाथी दादा ने घुमक्कड़ी से कहा, “ठीक-ठीक बता, ऐसे ही अपने मन से इधर-उधर की तो नहीं सुना रहा है?” घुमक्कड़ी तमक कर बोला, “अपने मन की क्यों सुनाऊँगा! जो सुना है वही बता रहा हूँ।” हाथी दादा ने कहा, “फिर तो गजब हो जाएगा! सोन चिरैया के परिवार में कुछ दिन पहले ही तो नन्हे-नन्हे बच्चे हुए हैं। दुख के दिनों को भुलाकर पूरे परिवार में खुशियाँ आई हैं। ऐसे में उस बेचारी पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ेगा।”
लंबू जिराफ बोला, “क्यों ना हम सोन चिरैया से कहदें कि वो अपने बच्चों को लेकर दूसरे पेड़ों पर चली जाए।” सभी को ये बात जच गई। घुमक्कड़ी सोन चिरैया को बुला लाया। हाथी दादा ने उसे सारी बात बताई। वो तो फूट-फूट कर रोने लगी।
“नहीं-नहीं दादा, ये बच्चे तो अभी बहुत छोटे हैं, इन्हें दूसरी जगह नहीं ले जाया जा सकता है। लगता है मेरा दुर्भाग्य मेरा पीछा करते-करते यहाँ भी पहुँच गया।” सोन चिरैया के साथ-साथ उसके परिवार कि सभी चिड़ियाएँ रोने लगीं। आसपास सारे जानवर मुँह उतारे हुए खड़े थे। घुमक्कड़ी बोला, “इस तरह रोने से क्या होगा! हम सबको मिलकर इस मुसीबत का सामना करना चाहिए, कोई उपाय खोजना चाहिए।” सोन चिरैया बोली, “नहीं भैया, मेरे परिवार के लिए आप सबके जीवन को खतरे में मत डालो।” हाथी दादा ने डांठते हुए कहा, “क्या कह रही हो सोन चिरैया, क्या तुम सब हमारे अपने नहीं हो? घुमक्कड़ी ठीक कहता है, हमें मिलकर कोई उपाय खोजना चाहिए।” सभी लोग सोच-विचार करने लग गए। हाथी दादा ने कहा, “अब मेरी बात ध्यान से सुनो। कल सुबह ही घुमक्कड़ी और ननकू अपने साथियों के साथ शहर वाले रास्ते पर जा बैठेंगे। जैसे ही शहर से लोगों को जंगल की ओर आते हुए देखेंगे तो ये लोग शोर करते हुए जंगल की ओर दौड़ेंगे। इससे हमें पता चल जाएगा कि वो लोग आ रहे हैं। इधर पेड़ों पर सभी बंदर और दूसरी तरफ हाथी और जिराफ अपने पूरे परिवार के साथ तैयार रहेंगे। घुमक्कड़ी और ननकू की आवाज़ सुनते ही सब के सब ज़ोर से चिल्लाते हुए जंगल में घुसने वाले लोगों की ओर भागेंगे।... सब को समझ में आ गया कि क्या करना है...?” सभी ने एक स्वर में कहा कि चाहे जो हो जाए इस बार सोन चिरैया का घर नहीं उजड़ने देंगे। सुबह सूरज उगने के साथ ही ननकू और घुमक्कड़ी अपने कुछ साथियों को लेकर शहर से जंगल की ओर आने वाले रास्ते पर डट गए। उनकी नज़रें दूर तक देख रही थीं। इधर पेड़ों और कंटीली झाड़ियों के पीछे हाथियों का पूरा दल छुपकर बैठ गया। दूसरी तरफ लंबू जिराफ अपने परिवार के साथ तैयार था। पेड़ों की ऊँची डालियों पर बंदरों की टोली सबसे पहले कूदने को तैयार थी। सब खामोशी से संकेत का इंतज़ार कर रहे थे। जंगल में ऐसा सन्नाटा कभी न छाया था। उधर सोन चिरैया बार-बार अपने बच्चों से चुप रहने को कह रही थी। मन ही मन डरी हुई वन-देवता से प्रार्थना कर रही थी। सूरज सामने वाले टीले के ऊपर चमकने लगा। तभी घुमक्कड़ी की नज़र दूर उड़ते हुए धूल के बादल की ओर गई। उसने फुसफुसा कर ननकू से कहा, “देख रही हो उधर, लगता है बहुत सारी गाडियाँ आ रही हैं।” ननकू लपक कर पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर पहुँची और देखा तो सच में शहर की ओर से एक के पीछे एक कई सारी गाडियाँ जंगल की ओर बढ़ रही थी। जैसे ही वो ज़रा करीब आए और वैसे ही घुमक्कड़ी और ननकू ने अपने साथियों के साथ ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ करनी शुरू करदी। बस इशारा मिलने की देर थी, हाथियों का झुंड चिंघाड़ता हुआ आगे बढ़ा, उधर जिराफ दौड़ने लगे और पेड़ों की डालियों से लटकते हुए बंदर कूद पड़े। जानवर गुस्से में हुंकार मचा रहे थे। और फिर जानवरों का ये दल शहर से आने वाली गाड़ियों पर टूट पड़ा। अचानक हुए ऐसे हमले से शहर से आए लोग चौंक गए और डर के मारे गाड़ियों से कूद-कूद कर भागने लगे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इन जानवरों को हो क्या गया है! जान बचाने के लिए उन्होंने गाडियाँ शहर की ओर मोड़ी और भाग छूटे। जानवरों ने उन्हें खदेड़ते हुए दूर तक भगाया जिससे वो फिर ना लौट आएँ। फिर हाथी दादा ने सबको रुक जाने के लिए कहा। सबके चेहरे पर जीत की खुशी झलक रही थी। नाचते-गाते-चिल्लाते वे जंगल में पहुँचे। हाथी दादा ने सोन चिरैया को बुलाया और कहा, “अब तुम्हें कोई डर नहीं है, आराम से रहो यहाँ। हमने उन लोगों को भगा दिया है। जब तक हम सब एक हैं, हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।” सोन चिरैया का चेहरा खिल उठा। उसने सभी को धन्यवाद दिया। घुमक्कड़ी बोला, “वैसे सबसे पहले खबर तो मैं ही लाया था।” ननकू बोली, “लो! ये फिर शुरू हो गया।” इस पर सभी जानवर ठहाका लगाकर हँस पड़े।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. 'संघे शक्ति कलौयुगे' को सार्थक करती सुन्दर कहानी

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  2. हार्दिक आभार ओमजी।
    संगठन में निहित शक्ति का उपयोग भी अपने घर आए एक मेहमान, एक निरीह प्राणी के घर को उजड़ने से बचाने के लिए किया गया, यह और भी अधिक प्रेरणादायी है।

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