मंगलवार, 1 जनवरी 2019

अपरिभाषित

अपरिभाषित
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अतीत के कुछ पल ऐसे

जो अटक गए जाने कैसे

कि जाते ही नहीं बीत

लगते ही नहीं अतीत

हर पल रहते सामने

वो गहरी आँखों से देखना

बंद लबों में मुस्कराना

बहुत कुछ कहकर भी कुछ न कह पाना

क्या कहूँ इन पलों को

वर्तमान या अतीत, या और कुछ

खोजो पारिभाषिक ग्रन्थों में

इनके लिए कोई नाम

तब तक मैं पुकारता रहूँगा इन्हें

'प्यार' कहकर।

केटी
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