रविवार, 24 दिसंबर 2017

ओवरटेक

फर्राटे से स्कूटी भगाते हुए वो आगे निकल जाती है, आगे... आगे... आगे ही आगे। हर किसी को ओवरटेक करती है। ... इतनी कहाँ की जल्दी है इसे... डर नहीं लगता क्या इसे!... सैकड़ों सवालों को ओवरटेक करती हुई आगे भागती है ये लड़की।
पहले ऐसे नहीं करती थी ये। डरती थी, धीरे-धीरे, आराम-आराम से स्कूटी चलाती हुई निकलती थी। दूसरे लोगों को खुद से आगे निकलने देती थी। पर जल्दी ही परेशान होने लगी। हर सड़क, हर रास्ते, हर चौराहे पर उसके साथ कुछ ऐसा होने लगा कि उसे लगा जैसे कोई उसे भद्दे तरीके से छू रहा हो। लोगबाग उसे ऊपर से नीचे तक घूरते हुए आगे निकलते और मुड़ मुड़कर घूरते ही जाते; जवान तो जवान, अधेड़ भी। कपड़ों को इधर-उधर से खींच कर वो आश्वस्त होने की कोशिश करती कि बदन का पोर पोर ढका रहे। फिर भी जब लोग उसकी स्कूटी से आगे निकलते हुए नजरों से ही उसके कपड़ों में घुसने लगते तो वो झुँझला कर रह जाती।
और तब ऐसे में एक दिन, एक सड़क के एक चौराहे पर उसे जाने क्या सूझी कि इससे पहले वो आदमी उसे घूरता वो फर्राटे से स्कूटी भगाती हुई उसे, इसे, हर घूरने वाले को ओवरटेक कर गई।
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