सोमवार, 22 जनवरी 2018

हैप्पी न्यू इयर

आज दिलीप नगर सोसाइटी के बच्चे बड़े उत्साह में थे। शाम होते ही सब के सब खेल के मैदान में इकट्ठा हो गए। सनी ने कहा, “दोस्तो! इस बार हम सब मिलकर नए साल का फंक्शन मनाएंगे। उस में सोसाइटी के सब लोगों को बुलाएँगे।” रॉबिन, गुड्डा, भव्य, चेष्टा, दीप्ति, शानू सभी खुशी से चिल्ला उठे... “बहुत मज़ा आएगा, खूब डांस करेंगे, पटाखे छोड़ेंगे।”  
      “पर दोस्तो, इसके लिए पैसा भी तो चाहिए,” भव्य ने शंका प्रकट की। “हाँ पैसा तो चाहिए,” सभी ने भव्य का समर्थन किया। थोड़ी देर के लिए सभी बच्चे चिंतित हो गए। तभी चेष्टा ने कहा, “क्यों न हम अपनी पॉकेट मनी से थोड़ा थोड़ा पैसा इकट्ठा करें।” “अरे हाँ, ये तो हो सकता है,” सबने कहा। रॉबिन ने मुँह बनाया, लेकिन फिर वो भी मान गया। तय तो हो गया मगर कार्यक्रम कहाँ होगा, कैसे होगा, ये बात बच्चों के समझ में नहीं आई। शानू ने कहा, “मैं पापा से पूछकर आ जाता हूँ।” सबने उसे रोक लिया क्योंकि बच्चे नहीं चाहते थे कि ये बात बड़ों को पहले से पता चले। अचानक गुड्डा को याद आया, “अरे क्यों न हम पंकज भैया की मदद लें।” पंकज कॉलेज में पढ़ता था पर गली के बच्चों को बहुत प्यार करता था। कभी-कभार वो इनके खेल में भी शामिल हो जाता था। चेष्टा ने कहा, “ठीक है, मैं पंकज भैया को बुलाकर लाती हूँ।” थोड़ी देर में वो पंकज भैया के साथ आ गई।
      पंकज ने आते ही बच्चों से कहा, “अरे क्या बात है, आज बड़े चुपचाप से बैठे हो, मुझे क्यों बुलाया है।” बच्चों ने जब पूरी बात पंकज को बताई तो वो बहुत खुश हुआ। “देखो, सबसे पहले पैसे इकट्ठे करो फिर बजट बनाओ कि कितने गुब्बारे लाने हैं, कितने पटाखे और कितनी मिठाई,” पंकज ने समझाया। “जब पैसे इकट्ठे करलो तो मुझे बुला लेना, मैं समझा दूंगा कि आगे क्या करना है,” ऐसा कहकर पंकज चला गया। सारे बच्चे हिसाब-किताब में लग गए। आखिर में तय हुआ कि सब लोग पचास-पचास रुपये लेकर आएंगे। भव्य ने कहा, “यार मैंने तो अपनी सारी पॉकेट मनी पहले ही खर्च करदी, अब तो सिर्फ दस रुपये बचे हैं।” चेष्टा बोली, “कोई बात नहीं, मेरे गुल्लक में एक सो साठ रुपये हैं, अभी मुझसे लेलो, फिर जमा करके लौटा देना।” इस तरह बच्चों का जोड़-तोड़ चलता रहा। अंधेरा होने को आ गया था, ठंड भी बढ़ रही थी। दूसरे दिन शाम को पैसे लेकर आने कि बात पक्की करके सब बच्चे अपने घरों की ओर लौट गए। जाते जाते भी फंक्शन की ही बातें हो रही थी।
      दूसरे दिन शाम को सभी बच्चे पैसे लेकर आए थे। शानू ने पैसे इकट्ठे किए , पूरे चार सौ पचास रुपये हो गए। वो अपने साथ पैन और डायरी लाया था। उसने बच्चों के नाम और उनसे लिए गए रुपये डायरी में लिख लिए। अब बजट बनाना था। इसके लिए पंकज भैया को बुलाया गया। पर शायद पंकज घर पर नहीं था तो बच्चों ने सोचा कुछ देर खेल लिया जाए। जबसे इस कार्यक्रम की बात उठी थी, उनका खेलना ही बंद हो गया था। छुपम-छुपाई का खेल शुरू हो गया। जब दीप्ति की बारी आई खोजने की तो बाकी सारे बच्चों ने इशारों-इशारों में सोसाइटी के बाहर बनी कच्ची बस्ती की ओर छुपने का प्लान बना लिया। यहाँ बबूल की झाड़ियों और गंदगी से भरी हुई ज़मीन पर कुछ कच्ची-पक्की झौपड़ियाँ बनी हुई थी।
      ठीक-ठाक पता भी नहीं था कि ये कौन लोग हैं और कबसे यहाँ पर हैं। यहाँ जगह-जगह कचरे के ढेर लगे हुए थे, बदबूदार पानी मकानों के पास से बह रहा था। कुछ बच्चे वहीं भागदौड़ मचा रहे थे। उनके बदन पर फटे-पुराने कपड़े थे। रॉबिन ने पहचाना, “अरे ये तो वही बच्चे हैं जो हमारे यहाँ रोटी मांगने आते हैं।” गुड्डा बोला, “ मैंने इन्हें पॉलीथीन की थैलियाँ बीनते हुए भी देखा है।” चेष्टा ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए कहा, “छी, कितने गंदे हैं ये, चलो यहाँ से।” सब बच्चे सोसाइटी के मैदान में आ गए। वहाँ दीप्ति और पंकज उनका इंतज़ार कर रहे थे। पंकज ने कहा, “अरे कहाँ चले गए थे तुम सब लोग।” जब गुड्डा ने कच्ची बस्ती की बात बताई तो पंकज ने सबको डाँठा और आगे से वहाँ ना जाने की हिदायत दी। “अच्छा वो तुम्हारे हैप्पी न्यू इयर के कार्यक्रम का क्या हुआ,” पंकज ने पूछा। शानू ने सारा हिसाब बताया। पंकज ने बजट बनाया और सारा सामान लाने की ज़िम्मेदारी ली। बच्चों से मैदान को साफ करने और होली के बचे हुए रंगों से रंगोली बनाने का कहकर पंकज चला गया।  
      पंकज के जाते ही बच्चों ने एक दूसरे की ओर देखा और मैदान साफ करने लग गए। शानू ने कहा, “सब लोग पहले मैदान से बड़े पत्थर और कांटे उठा कर एक तरफ ढेर लगा दो। हालाँकि बच्चे काम तो कर रहे थे लेकिन उनका मन उसी बस्ती में अटका हुआ था। रॉबिन ने कहा, “उन बच्चों के कपड़े कितने गंदे और फटे हुए थे।” भव्य बोला, “ये लोग नहाते नहीं हैं क्या?” गुड्डा ने कहा, “उनको भी शामिल करलें अपने साथ?” इस पर एक बार तो सभी हँस पड़े फिर बातें करने लगे। “क्या ये बच्चे भी हैप्पी न्यू इयर मनाते होंगे,” चेष्टा बोली। इस तरह उन बच्चों की बातें करते करते सब ने काम छोड़ दिया और वहीं मैदान में बैठ गए। शानू बोला, “इस तरह तो हो चुका हमारा प्रोग्राम, अभी आधा मैदान भी साफ नहीं हुआ है, पंकज भैया को पता चलेगा तो कितने नाराज़ होंगे।” दीप्ति ने सुझाव दिया कि अगर वे बच्चे नहा-धोकर साफ सुथरे कपड़े पहन लें तो उन्हें साथ में शामिल किया जा सकता है। इस पर सब बच्चे खड़े हो गए। “हाँ-हाँ, हम अपने पैसों से साबुन और तेल खरीद कर लाएँगे और उन बच्चों को दे देंगे,” चेष्टा बोली। सनी ने कहा, “ हम अपने पुराने कपड़े भी उन्हें दे सकते हैं।” रॉबिन दौड़ कर गया और पंकज भैया को बुला लाया। सनी ने पंकज को सारी बातें बताई और मदद करने को कहा। “अगर पैसे उन पर खर्च कर दोगे तो तुम्हारे हैप्पी न्यू इयर फंक्शन का क्या होगा,” पंकज ने पूछा। “नहीं-नहीं हमें उन बच्चों को अपने साथ शामिल करना ही है,” सभी ने एक साथ कहा। सब बच्चे पंकज के साथ चल पड़े। चौराहे की दुकान से पाँच नहाने के साबुन की टिकिया और पाँच छोटी शीशी तेल लेकर वे कच्ची बस्ती पहुँच गए। वहाँ पहुँच कर पंकज ने उन बच्चों को बुलाया और उनसे अपने घर वालों को बुलाने के लिए कहा। थोड़ी ही देर में चार-पाँच औरतें और कुछ आदमी उन बच्चों के साथ वहाँ आए। “क्या हुआ साहब जी, हमारे बच्चों ने कोई बदमाशी की है क्या,” एक औरत ने सहमते हुए पूछा। एक आदमी तो गुस्से से उन बच्चों पर चिल्लाने लगा, “कभी अगर साहब लोगों की शिकायत आई तो तुम सबकी टांगें तोड़ दूंगा,” ऐसा कहते हुए वो हाथ जोड़कर माफी मांगने लगा। सोसाइटी के सभी बच्चे ये नज़ारा देखकर हैरान हो रहे थे।
      पंकज ने उन लोगों को समझाया और कहा, “देखो, जैसा आप लोग समझ रहे हो वैसा कुछ नहीं है। हम कोई शिकायत लेकर नहीं आए है। हमारी सोसाइटी के बच्चे चाहते हैं कि नए साल के फंक्शन में आप लोगों के बच्चे भी इन लोगों के साथ शामिल हों। लेकिन इससे पहले आप इन्हें साफ सफाई से रखें। इनको रोज़ सुबह साबुन से नहला कर सिर पर तेल लगाकर बालों में कंघी करें। इनके बढ़े हुए नाखून काटें।” एक औरत ने सिर झुकाते हुए कहा, “साहब हम गरीब लोग साबुन तेल के लिए पैसा कहाँ से लाएँ? ये तो अमीर लोगों के शौक हैं।” साफ सफाई से रहना कोई शौक-मौज की बात नहीं है और ना ही इसमें इतना ज़्यादा पैसा खर्च होता है। ये देखो, इन बच्चों ने आपके बच्चों के लिए पैसे इकट्ठे करके साबुन और तेल खरीदा है, अब आप लोग भी सफाई से रहना और इन बच्चों को भी सफाई से रखना। हम कल फिर आएंगे, इन बच्चों के लिए कपड़े भी लाएँगे,” ऐसा कहकर पंकज सोसाइटी के बच्चों को लेकर लौट गया। लौटते वक़्त चेष्टा ने उन बच्चों को हाथ हिलाकर टाटा किया। इस पर कुछ संकोच से उन बच्चों ने एक दूसरे को देखा फिर वे भी मुस्करा के हाथ हिलाने लगे।
      दूसरे दिन जब सभी बच्चे अपने पुराने कपड़े, चप्पल और जूते लेकर वहाँ आए तो उन बच्चों को देखकर हैरान रह गए। उनका तो रूप ही बदल गया था। नहा-धोकर वे साफ सुथरे लग रहे थे। रॉबिन ने सबको कपड़े बाँटे, सनी ने सब बच्चों को नाप के हिसाब से चप्पल और जूते बाँट दिये। वे बच्चे अपने अपने घरों की और भागे और फटाफट नए कपड़े और जूते पहन कर आ गए। “अब तुम सब लोग हमारे साथ चलो, हम सब मिलकर खेलेंगे,” भव्य ने कहा। सबके सब सोसाइटी के मैदान में आ गए। सबने अपने अपने नाम बताए। थोड़ी ही देर में उनमें अच्छी दोस्ती हो गई। सबने मिलकर कई खेल खेले। शाम हो गई। सब अपने घरों को जाने की तैयारी करने लगे। कच्ची बस्ती के बच्चे भी लौटने लगे। तभी पंकज आ गया। उनको देखकर बोला, “अरे वाह! तुम लोग तो पहचान में ही नहीं आ रहे हो। शाबास! अब हमेशा इसी तरह साफ सुथरे रहना, और हाँ, कल शाम को आना मत भूलना, सब मिलकर हैप्पी न्यू इयर फंक्शन की तैयारी करेंगे।” सोसाइटी के बच्चे खड़े थे और कच्ची बस्ती के उनके नए दोस्त रामू, गोपाल, मीना और राजू अपने घर को लौट रहे थे। वे बार-बार मुड़ते और हाथ हिलाते। सोसाइटी के भी सारे बच्चे उन्हीं को देखते हुए हाथ हिला रहे थे। आज उन्होंने नए दोस्त बनाए थे। धीरे-धीरे सभी बच्चे अपने घरों की ओर बढ्ने लगे।

------------------------------------------------------------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें