शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

गुलमोहर तले

गुलमोहर तले
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सुनो तो!

लौटोगी जब बाजार से

लाओगी क्या मेरे लिए

कुछ अनछुए छंद, कुछ बेमानी तुक

और एक गगरी भाव-रस?

बैठा रहूँगा  तब तक मैं

इसी गुलमोहर के पेड़ के नीचे

करता रहूँगा प्रतीक्षा

देखता रहूँगा दूर मैदान में

अपनी छाया को हर पल लम्बा होता।

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