रविवार, 30 सितंबर 2018

कामना-काॅम्प्लेक्स

(1)
पापा! आप और मम्मी हर रोज

छत से देखा करते थे चाँद,

अब वो क्यों नहीं दिखता?

गुड़िया! तेरे होने के साथ ही

सड़क पार बनने लगा था 'कामना-काॅम्प्लेक्स'

तेरे बड़े होने तक वो इतना बड़ा हो गया

कि ढक लिया उसने

तेरे हिस्से का आकाश, तेरे हिस्से का चाँद।

(2)
अभी कुछ दिन पहले तक

जब बिके नहीं थे इसके फ्लैट

बेसमेंट में इसके रहता था

दिहाड़ी मजदूर श्यामुआ का परिवार।

दिन की मजदूरी, रात की चौकीदारी

बदले में थी रहने को ठौर

मालिक की कृपा और कुछ पैसा भी।

एक दिन बहुत धूमधाम हुई

श्यामुआ के पूरे परिवार ने सजाई

कामना-काॅम्प्लेक्स पर बिजली की लड़ियाँ

कई बड़े लोग आए, खाना-पीना हुआ

फ्लैटों में परिवार बस गए

उसी रात श्यामुआ, उसकी बीवी और तीन बच्चे

सड़क पार फुटपाथ पर बसा रहे थे

अपना नया घर।

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