रविवार, 7 जुलाई 2019

असीम की अठखेलियाँ

मन उलझता असीम से आई पहेलियों में

बूझता उनके हल

और खुशी से किलक उठता।

खुशी देती मन को उड़ान

उछलता मन, कूदता मन, नाचने लगता।

और फिर असीम बूढ़े बाबा सा

रखता मन रूपी बालक के गालों पर हाथ

हँसता, पेट भर हँसता और खोल देता राज

कि "बच्चे तेरा उत्तर गलत है!"

मन की गति थम जाती, होता उदास

सिसकने लगता।

रे मन! असीम की अटखेलियाँ हैं उसकी पहेलियाँ

तू हल बूझ, खोल दरवाजे

और प्रतीक्षा कर,

प्रतीक्षा उस पहेलीबाज की।

वही बताएगा हल सही था या गलत

उसके बाद खुश होना, नाचना, जी भर जश्न मनाना।

तब तक

सिर्फ पहेलियाँ हैं, बूझने की दौड़ है

और है प्रतीक्षा।

केटी
****

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें