रविवार, 9 अप्रैल 2017

वो लड़की

वो लड़की

जो दोनों हाथों को गोल कर

कैद कर लेती थी सूरज को,

मचल कर गर्दन घुमा

मुसकराहटों के कई सारे बंद लिफाफे

बिखेर देती थी फिजाँ में,

निचले होठ को लापरवाही से आधा दबा

'च्च' की ध्वनि करते हुए

आँखों की पुतलियों को फैला लेती

आकाश-सा,

अक्सर झाँकते हुए मेरे मन के दरीचों में,

कहकर भाग उठती है कि ढूँढो तो,

मैं कहाँ हूँ।

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