सोमवार, 10 अप्रैल 2017

झील किनारे

सुनो सैलानी!

दूर किसी शहर में चलते हुए

पहुँच जाओ जब

किसी झील के किनारे

बस इतना करना

उठाना किनारे से एक कंकर

उछाल देना झील में।

पानी से ज्यादा हिलोरें

मन में उठने लगेंगी

देख लेना।

उन्ही हिलोरों से झांकेगा बचपन

अबोध किलकारियाँ

घड़ी भर की खुशियाँ

अंजुरी भर सपने।

रह जाएगी यात्रा अधूरी इसके बिना

यात्रा- जीवन की...

भूल मत जाना सैलानी

उस झील के किनारे।

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