सोमवार, 10 अप्रैल 2017

मुड़ा हुआ पन्ना

किताब का वो पन्ना

जिसका कोना मुड़ा हुआ हो

केवल पन्ना नहीं होता।

वो होता है एक दस्तावेज

हमारे चलने और किसी मोड़ पर ठहरने का।

मन के भीतर किन किन गलियों से गुज़रे थे

किन किन गंधों को फिर से पाया था

या कि कौनसे नए- एकदम नए सपने ने

पहली दस्तक दी थी दिल पे

कौन कौनसे ज़बरन भुलाये चेहरे

बलात फिर आ बैठे यादों के झरोखे में

समेटे रहता है अपने में

किताब का वो पन्ना

जिसका कोना मुड़ा हुआ हो।

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